बिलासपुर / शिक्षाविद और समाजसेवी प्रोफेसर प्रभुदत्त (पीडी) खेड़ा का सोमवार को बिलासपुर के अपोलो अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांसे ली। प्रोफेसर 93 साल के थे। अस्पताल में वह लंबे समय से इलाज करवा रहे थे।जिसका अंतिम संस्कार आज अचानक मार्ग स्थित लमनी में किया गया जहां सांसद जनप्रतिनिधी और ग्रामीणों ने नम ऑखों से उन्हें विदाई दिये। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया है। प्रो. खेड़ा ने बिलासपुर जिले में अचानकमार सेंचुरी एरिया के घने जंगलों में जिंदगी बिताई। यहां के लमनी गांव में वह कुटिया बनाकर रहा करते थे। दिल्ली विश्वविद्यालय के रिटायर्ड प्रोफेसर खेड़ा बैगा आदिवासियों के बीच रहकर उनकी शिक्षा पर काम किया करत थे। आए थे एजुकेशनल टूर पर, आदिवासियों की हालत देख यहीं रूक गए डॉ. खेड़ा गणित में एमएससी व समाजशास्त्र में एमए के अलावा पीएचडी होल्डर भी थे। साल 1983 में दिल्ली यूनिवर्सिटी के समाजशास्त्र विभाग के छात्रों के एक दल को लेकर अचानकमार के घने जंगलों में बैगा आदिवासियों पर अध्ययन करने आए थे। उन्हें आदिवासियों के जीवन स्तर को सुधारने की एक रिपोर्ट भी केंद्र सरकार को सौंपनी थी। यहां आदिवासियों की बुरी हालत देख प्रो खेरा ने यहीं रूकने का मन बनाया। साथ आए छात्रों को एक हफ्ते की छुट्टी की अर्जी देकर लौटा दिया। कुछ समय बाद प्रो खेड़ा ने खुद को इन्हीं जंगलों के नाम कर दिया। अपनी पेंशन के पैसों से यहां उन्होंने स्कूल भी बनवाया यहां खुद वह बच्चों को पढ़ाते थे.बंटवारे के बाद आए थे भारत सन 1928 में प्रो खेड़ा का जन्म लाहौर में हुआ। देश के बंटवारे के वक्त वह पाकिस्तान से भारत आए थे। दिल्ली में रहकर पढ़ाई कि बाद में विश्वविद्यालय में प्रोफेसर बने। एनसीआरटीई में भी उन्होंने काम किया।अचानकमार में आदिवासियों के जीवन स्तर को उपर उठाने के प्रयासों के लिए उन्हें तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने उन्हें सम्मानित किया। जो स्कूल उन्होंने अपनी पेंशन के पैसों से बनाया था उसे बेहतर करने 20 लाख रुपए भी मिले थे।
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