बिलासपुर शहर की पुलिस पर, आखिर व्यापारी ही, क्यों आरोप लगा रहे हैं…? शहर में और कोई लॉक डाउन की आड़ में पुलिस पर वसूली का आरोप नहीं लगा रहा…
आम जनता तो लॉकडाउन के दौरान पुलिस के बर्ताव की तारीफ कर रही….
कहीं ऐसा तो नहीं कि शहर के व्यापारी दुकानें भी खोलना चाहते हैं, व्यापार भी करना चाहते हैं,. लेकिन, लॉकडाउन के नियमों का पालन न वे खुद करना चाहते हैं और अपने ग्राहकों से कराना चाहते हैं…
बिलासपुर (शशि कोन्हेर) // कुछ लोगों को यह बात जरूर कड़वी लग सकती है कि बिलासपुर शहर में जब कभी पुलिस अथवा प्रशासन किसी भी नियम कायदे को सख्ती से लागू करने की पहल शुरू करता है तो, कुछ दिनों के भीतर ही व्यापारियों की ओर से पुलिस और प्रशासन का संगठित विरोध शुरू हो जाता है। पहले व्यापारी स्वयं ही सामूहिक रूप से पुलिस का विरोध करते हैं। उसके बाद बिलासपुर के जो भी जनप्रतिनिधि होते हैं उनके दरवाजे जाकर पुलिस व प्रशासन पर दबाव बनाते है। ऐसा बीते सालों में कई बार हो चुका है। और बिलासपुर में शुरू से ही यह विडंबना रही है कि यहां के नेता, (फिर वे किसी भी पार्टी के हो) व्यापारियों की बातों को तुरत-फुरत समझ कर (फिर वो सही हो या गलत ) उनका ही साथ देने लगते हैं। बिलासपुर में हमेशा से जब तक प्रशासन छोटे-मोटे फुटपातिया अथवा सड़क छाप फुटकर व्यापारियों के खिलाफ कार्रवाई करता है, तब तक कोई कुछ नहीं कहता। और जैसे ही प्रशासन का रुख शहर के दो एक प्रमुख बाजारों की ओर होता है.. प्रशासन और पुलिस की कार्रवाई का विरोध होना शुरू हो जाता है।
40-50 साल से बिलासपुर में बेजा कब्जा के खिलाफ चलने वाली तोड़फोड़ की कार्रवाई के दौरान यह तमाशा पूरा शहर, कई बार देख चुका है।( बतौर उदाहरण) कुछ साल पहले बिलासपुर को पॉलिथीन मुक्त करने की पहल ने व्यापारियों के संगठित-सामूहिक विरोध की चपेट में आकर कैसा दम तोड़ दिया था…? इसे याद दिलाने की जरूरत नहीं होगी..! यह शहर के लोगों को अभी भी अच्छी तरह से याद है । तब जब तक पुलिस और प्रशासन शहर में विभिन्न स्थानों पर पोलीथीन के खिलाफ कार्रवाई करता रहा, तब तक तो सब ठीक-ठाक रहा। लेकिन जैसे ही एक दिन व्यापार विहार के एक बड़े और नामी व्यापारी पर पॉलिथीन के मामले को लेकर कार्यवाही हुई। शहर में बवाल मच गया। आखिर में व्यापारियों के साथ प्रशासन की कलेक्ट्रेट के मंथन सभा कक्षा में तत्कालीन कलेक्टर की मौजूदगी में बैठक हुई। और इस बैठक के बाद शहर में निगम और प्रशासन द्वारा पुलिस के सहयोग से चलाई गई, पॉलिथीन विरोधी मुहिम की, “ऐसी की तैसी” कर दी गई।
आज भी बिलासपुर की तासीर में कोई बहुत बड़ी तब्दीली नहीं आई है…
अभी भी पूरे शहर में लॉकडाउन को लेकर आम जनता का रुख अलग है.. वहीं, व्यापारियों का रुख अलग…! लॉकडाउन के दौरान कमाई-धमाई से महरूम आम जनता, शासन प्रशासन के नियमों का शुरू से ही इसलिए, स्वस्फूर्त पालन कर रही है, क्योंकि शहर में कोरोना संक्रमण की महामारी को खत्म करने और लोगों की जान बचाने के लिए लॉकडाउन अनिवार्य मजबूरी की तरह, अंतिम हथियार बन गया है। लेकिन इस लॉक डाउन को लेकर व्यापारियों और खासकर बड़े व्यापारियों को खासा एतराज रहा है। वे लॉकडाउन में अपनी दुकानें तो खोलना चाहते हैं। लेकिन, दुकानों में भीड़-भाड़ को रोकने और मास्क की अनिवार्यता तथा सोशल डिस्टेंसिंग के नियम का पालन करने को वे अपनी जिम्मेदारी मानने के लिए तैयार ही नहीं हैं। वे अपनी दुकान में बिना मास्क पहने सामान लेने के लिए आने वाले किसी भी ग्राहक को यह कहने को तैयार नहीं हैं कि, जाओ पहले मास्क पहन कर आओ..तभी तुम्हें सामान मिलेगा…पुलिस ने दो-चार दिन पहले शनिचरी पड़ाव में लॉकडाउन के नियमों का पालन न करने वाले व्यापारियों के खिलाफ सख्ती से कार्रवाई की। कुछ व्यापारियों पर मामले भी दर्ज हुए थे । हालांकि इसके खिलाफ भी शनीचरी के व्यापारी शहर विधायक के दरवाजे पर जा धमके और पुलिस की शिकायत करने लगे। अब एक बार फिर शुक्रवार को बुधवारी बाजार के व्यापारियों ने पुलिस पर जबरिया वसूली का आरोप लगाया है। जबकि व्यापारियों के इस आरोप में क्या और कितनी सचाई है..? इसका पता, किसी मुकम्मल जांच से ही लग सकता है। लेकिन बुधवारी के व्यापारी भी शनिचरी बाजार के व्यापारियों की तरह शहर विधायक शैलेश पांडेय के दरवाजे पर जा धमके। और विधायक से पुलिस और प्रशासन की यह शिकायत करने लगे कि पुलिस, बुधवारी बाजार क्षेत्र में अवैध वसूली में लगी हुई है। जबकि हालात, यहां भी मामला कुछ और ही होने की चुगली कर रहे हैं। संभव है बुधवारी बाजार के व्यापारी भी शहर के शनिचरी पढ़ाव और व्यापार विहार के व्यापारियों की तरह ही बिना किसी पाबंदी के, बेरोकटोक व्यापार करना चाहते हों। और पुलिस उन पर बुधवारी बाजार में मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग को लेकर कुछ ज्यादा ही (लेकिन जायज) दबाव डाल रही हो।
यहां हमें ध्यान रखना चाहिए कि बीमार पड़ने पर किसी डॉक्टर द्वारा दी जाने वाली बेहद “कड़वी से कड़वी” दवा भी आखिरकार मरीज को ही फायदा करती है। उसी तरह व्यापारी भी अगर अपनी दुकानों में मास्क लगाकर बैठेंगे और बिना मास्क वाले ग्राहकों को सामान नहीं देंगे साथ ही सोशल डिस्टेंसिंग का पूरी “जिद” के साथ पालन करेंगे और कराएंगे, तो उसका उन्हें भी लाभ मिलेगा। इस स्वानुशासन से वे खुद और उनका परिवार भी कोरोना जैसी घातक महामारी से सुरक्षित रहेगा। लॉकडाउन भी ऐसी ही कड़वी लेकिन “इकलौती” रामबाण दवा है। जिसके जरिए कोरोना महामारी के बढ़ते संक्रमण पर अंकुश लगाकर उसे समाप्त किया जा सकता है। बिलासपुर में भी संक्रमण का ग्राफ जब काफी तेजी से ऊपर चढ़ने लगा। तब शासन प्रशासन ने मजबूरी में यहां सख्त लॉकडाउन लगाने का निर्णय लिया। शहर के 90% से अधिक बाशिंदों ने शासन प्रशासन के इस कदम का स्वागत किया और बहुत हद तक अपने आप को अपने घरों में कैद कर लिया। लेकिन असल समस्या, बाकी 10% लोगों की है, जिनमें व्यापारी वर्ग के भी अनेक लोग आते हैं। इन्हीं लोगों को हमेशा ही पुलिस और प्रशासन की कार्रवाई पर एतराज रहता है।
जबकि बिलासपुर में डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों के साथ ही यहां का प्रशासन और पुलिस महकमें के अधिकारी और कर्मचारी इस बात के लिए बेहद बधाई और साधुवाद के पात्र हैं कि उनकी बेहद सक्रियता के कारण ही शहर व जिले में कोरोना संक्रमण की दर और मरीजों के मौत की बढ़ती संख्या पर काफी हद तक काबू पाया जा सका है।
जाहिर है कि ऐसे में बेजा वसूली जैसे हल्के आरोपों की आड़ लेकर पुलिस पर दबाव बनाने की पहल कतई स्वागत योग्य नहीं कही जा सकती। हालांकि हमारा व्यक्तिगत रूप से यह मानना है कि प्रशासन और शासन को व्यापारियों के आरोपों को गंभीरता से लेते हुए उनकी जांच करनी चाहिए..लेकिन व्यापारियों से यह भी स्पष्ट कर देना चाहिए कि अगर वे लॉक डाउन का स्वत: होकर पालन नहीं करेंगे। तो पुलिस और प्रशासन इस काम को करने पर विवश होगे। इसके तहत लॉकडाउन के दौरान व्यापारियों को, स्वयं मास्को पहनना, बिना मास्क पहने आने वाले ग्राहकों को बैरंग वापस लौटाना और दुकान के सामने हर हाल में सोशल डिस्टेंसिंग कायम रखना अपनी ही जिम्मेदारी मानना चाहिए। और अगर वे ऐसा नहीं करते तो पुलिस और प्रशासन को पूरी सख्ती के साथ शहर की आम जनता की तरह, उनसे भी लॉक डाउन का पालन कराने पर विवश होगा। क्योंकि मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग जैसी बेहद अनिवार्य हो चुकी बातों मे ढील देकर शहर की जनता को “कोरोना संक्रमण” के हाथों, मरने के लिए कतई नहीं छोड़ा जा सकता।
बहरहाल, पुलिस और प्रशासन के बड़े अधिकारियों को चंद व्यापारियों के द्वारा लगाए गए आरोपों की जांच करनी चाहिए। और इनमें कोई सच्चाई हो तो दोषियों के खिलाफ कार्रवाई भी करनी चाहिए। लेकिन इस दौरान शहर के व्यापारियों से स्पष्ट कहा जाना चाहिए कि उन्हें भी शहर की आम जनता के समान हर हाल में लॉकडाउन के नियमों का पालन करना होगा। इसमें किसी को भी किसी भी तरह की विशेष छूट नहीं दी जानी चाहिए। फिर चाहे वह व्यापारी हों, राजनीतिक पार्टियों के नेता हों या फिर कोई और तुर्रम खान…! प्रशासन को ना केवल व्यापारियों से वरन सभी से यह साफ कहना चाहिए कि अगर बिलासपुर में रहना है तो,, लॉकडाउन के नियमों का पालन करना ही होगा..!
व्यापारी संगठनों से पूरी विनम्रता के साथ एक जरूरी बात और….
बिलासपुर में पिछली बार लगे लॉक डाउन की तरह ही इस बार भी शहर में बहुत सारी जरूरी उपभोग की चीजें, खुलेआम ब्लैक में बेची जा रही हैं। गुड़ाखू और पान मसाला, खाने का तेल समेत खाद्यान्न व राशन पानी के दूसरे सामान भी डेवढे और डबल कीमत पर ब्लैक में बेचे जा रहे हैं। व्यापारी संगठनों को भी इस बात की जानकारी हो सकती है कि ऐसा धतकरम उनके बीच के …कौन-कौन लोग ऐसा घटिया काम कर रहे हैैं..? पहली बार लगे लॉकडाउन के दौरान भी यह उनकी जानकारी में रहा होगा और अभी भी..! लेकिन अफसोस कि व्यापारी संगठनों ने अपने ही बीच की ऐसी गंदी मछलियों के खिलाफ कभी कोई कार्यवाही, ना तो खुद की और ना ही ऐसी कार्रवाई करने में प्रशासन की ही कोई मदद की। उनसे यह अपेक्षा करने में कोई बुराई नहीं है कि बिलासपुर के लोगों को जरूरी सामान ब्लैक में बेचने वालों को बेनकाब करने में उन्हें मदद करनी चाहिए। ऐसे लोग न केवल पहले से परेशान हाल आम जनता की गर्दन दबा कर उसे लूट रहे हैं वरन व्यापारी कौम को भी बदनाम कर रहे हैं…उम्मीद करनी चाहिए कि शहर के व्यापारी संगठन, ऐसे धतकरम करने वालों पर भी नजर रखेंगे और जनता को डबल-तिबल कीमत पर ब्लैक में सामान बेचने वाले व्यापारियों को (दूध में पड़ी मक्खी की तरह) अपने संगठन से निकाल बाहर करेंगे..!
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