योग से निरोग : सिद्धासन :सर्वश्रेष्ठ ब्रम्हचर्य आसन : जानिए योग के लाभ , करने की विधि और सावधानियां…

योग से निरोग : सिद्धासन :सर्वश्रेष्ठ ब्रम्हचर्य आसन : जानिए योग के लाभ , करने की विधि और सावधानियां…

सिद्धासन नाम से ही ज्ञात होता है कि यह आसन सभी सिद्धियों को प्रदान करने वाला है, इसलिए इसे सिद्धासन कहा जाता है। यमों में ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ है, नियमों में शौच श्रेष्ठ है वैसे आसनों में सिद्धासन श्रेष्ठ है। यह आसन साधू संतो द्वारा सिद्ध माना जाता है और बैठने के सभी मुख्य आसनों में सबसे उच्च स्थान रखता है | यह आसन सभी 72 हजार नाड़ियों को शुद्धिकरण करने की क्षमता रखता है | यही कारण है की सभी आसनों में यह सर्वश्रेष्ठ माना जाता है |

सिद्धासन का महत्व और लाभ….

सिद्धासन के अभ्यास से शरीर की समस्त नाड़ियों का शुद्धिकरण होता है। प्राणतत्त्व स्वाभाविकतया ऊर्ध्वगति को प्राप्त होता है। फलतः मन को एकाग्र करना सरल बनता है।

पाचनक्रिया नियमित होती है। श्वास के रोग, हृदय रोग, जीर्णज्वर, अजीर्ण, अतिसार, शुक्रदोष आदि दूर होते हैं। मंदाग्नि, मरोड़ा, संग्रहणी, वातविकार, क्षय, दमा, मधुप्रमेह, प्लीहा की वृद्धि आदि अनेक रोगों का प्रशमन होता है। पद्मासन के अभ्यास से जो रोग दूर होते हैं वे सिद्धासन के अभ्यास से भी दूर होते हैं।

ब्रह्मचर्य-पालन में यह आसन विशेष रूप से सहायक होता है। विचार पवित्र बनते हैं। मन एकाग्र होता है। सिद्धासन का अभ्यासी भोग-विलास से बच सकता है। 72 हजार नाड़ियों का मल इस आसन के अभ्यास से दूर होता है। वीर्य की रक्षा होती है। स्वप्नदोष के रोगी को यह आसन अवश्य करना चाहिए।

योगीजन सिद्धासन के अभ्यास से वीर्य की रक्षा करके प्राणायाम के द्वारा उसको मस्तिष्क की ओर ले जाते हैं जिससे वीर्य ओज तथा मेधाशक्ति में परिणत होकर दिव्यता का अनुभव करता है। मानसिक शक्तियों का विकास होता है।

कुण्डलिनी शक्ति जागृत करने के लिए यह आसन प्रथम सोपान है….

सिद्धासन में बैठकर जो कुछ पढ़ा जाता है वह अच्छी तरह याद रह जाता है। विद्यार्थियों के लिए यह आसन विशेष लाभदायक है। जठराग्नि तेज होती है। दिमाग स्थिर बनता है जिससे स्मरणशक्ति बढ़ती है।

आत्मा का ध्यान करने वाला योगी यदि मिताहारी बनकर बारह वर्ष तक सिद्धासन का अभ्यास करे तो सिद्धि को प्राप्त होता है। सिद्धासन सिद्ध होने के बाद अन्य आसनों का कोई प्रयोजन नहीं रह जाता। सिद्धासन से केवल या केवली कुम्भक सिद्ध होता है। छः मास में भी केवली कुम्भक सिद्ध हो सकता है और ऐसे सिद्ध योगी के दर्शन-पूजन से पातक नष्ट होते हैं, मनोकामना पूर्ण होती है। सिद्धासन के प्रताप से निर्बीज समाधि सिद्ध हो जाती है। मूलबन्ध, उड्डीयान बन्ध और जालन्धर बन्ध अपने आप होने लगते हैं।

सिद्धासन योग करने की विधि ,, सिद्धासन में बैठने की विधि….

सबसे पहले जमीन पर चटाई बिछा कर पैरो को सीधा करके बैठ जाये |

अब बांये पैर को मोड़े और पैर की एड़ी को गुदा मुख और यौन अंगो के मध्य रखे |

अब दांये पैर को मोड़े और इसकी एड़ी को यौन अंगो के ऊपर रखे |

हाथो को ज्ञानमुद्रा के रूप में पैरो पर रखे |

कुछ देर इसी तरह रहने दे , साँसे सामान्य रखे

अब पैरो का क्रम बदलकर पुनः यही करे |

सिद्धासन के लिए सावधानियां….

सिद्धासन को बलपूर्वक नहीं करना चाहिए।

यह आसन शांत एवं आराम भाव से करना चाहिए।

अगर घुटने में दर्द हो तो कुछ समय के लिए इस आसन को करने से बचें।

उनको भी इस आसन को नहीं करनी चाहिए जिन्हें कमर दर्द की शिकायत हो।

सिद्धासन महापुरूषों का आसन है। सामान्य व्यक्ति हठपूर्वक इसका उपयोग न करें, अन्यथा लाभ के बदले हानि होने की सम्भावना है।

सिद्धासन जैसा दूसरा आसन नहीं है, केवली कुम्भक के समान प्राणायाम नहीं है, खेचरी मुद्रा के समान अन्य मुद्रा नहीं है और अनाहत नाद जैसा कोई नाद नहीं है।

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