हिंदी विश्‍वविद्यालय ‘सुधार और सरोकार की पत्रकारिता के सौ साल’ विषय पर राष्‍ट्रीय वेबिनार… केंद्रीय राज्‍यमंत्री आठवले ने किया उदघाटन… मूकनायक ने समाज को जगाने का किया काम : केंद्रीय राज्‍यमंत्री रामदास आठवले…

वर्धा, 2 जनवरी // महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय, वर्धा एवं भारतीय जनसंचार संस्‍थान, नई दिल्‍ली के संयुक्‍त तत्‍वावधान में ‘मूकनायक’ के सौ वर्ष पूरे होने के अवसर पर शनिवार 2 जनवरी को ‘सुधार और सरोकार की पत्रकारिता के सौ साल’ विषय पर आयोजित राष्‍ट्रीय वेबिनार का उदघाटन करते हुए केंद्रीय सामाजिक न्‍याय एवं अधिकारिता राज्‍यमंत्री माननीय रामदास आठवले ने कहा कि ‘मूकनायक’ पत्रिका के माध्‍यम से डॉ. बाबासाहब आंबेडकर ने बोलने का अधिकार देकर समाज को जगाने का काम किया है। जाति मुक्‍त समाज के पक्षधर रहे बाबासाहब ने हमेशा समाज में एकता स्‍थापित करने की बा‍त की। उनके विचार समता के संदेश को प्रसारित करते हैं। केंद्रीय राज्‍यमंत्री आठवले ने कहा कि बाबासाहब के सामाजिक और आर्थिक विचारधारा को आगे ले जाने की आवश्‍यकता है।

केंद्रीय राज्‍यमंत्री आठवले ने आगे कहा कि बाबासाहब महज 29 वर्ष के थे जब उनकी भेंट कोल्‍हापुर संस्‍थान के महाराजा शाहु महाराज से हुई थी और मानगांव की परिषद में खुद शाहु महाराज ने लोगों से आहवान करते हुए बाबासाहब को नेता मानने के लिए कहा था। बाबासाहब एक सफल पत्रकार, लेखक और सुधारक हैं। उन्‍होंने मराठी भाषा में मूकनायक पाक्षिक प्रारंभ किया। बाबासाहब ने समाज सुधार के आंदोलन हमेशा शांतिपूर्ण तरीके से किये, इस संबंध में केंद्रीय राज्यमंत्री ने कहा कि महाड़ के चवदार तालाब के पानी को लेकर किये आंदोलन के समय कुछ लोगों ने पथराव कर आंदोलन को असफल बनाने का काम किया था। परंतु बाबासाहब ने अपने अनुयायियों को जवाब देने से मना किया और शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन किया। उनका विचार था कि हजारों वर्षों से लोगों के मन में बैठी विचारधारा को खत्‍म किया जाना आवश्‍यक है, तभी समाज समानता की दिशा में आगे जा सकता है। इसी को लेकर बाबासाहब ने अंतरजातीय विवाह को बढ़ावा देने का विचार दिया था। मूकनायक शुरू करने के पीछे लोगों को बोलने का मौका देने की जिम्‍मेदारी दी और जातिवाद को हटाने का काम किया। इसी परिप्रेक्ष्‍य में मूकनायक की शुरूआत हुई। बाद में बाबासाहब ने जनता और प्रबुद्ध भारत जैसी पत्रिकाएं निकाली। मूकनायक के माध्‍यम से उन्‍होंने समाज को जोड़ने की प्रक्रिया शुरू की। उनका चरित्र समानता के विचारों को लेकर चलने वाला है। पुना पैक्‍ट का उल्‍लेख करते राज्‍यमंत्री आठवले जी ने कहा कि बाबासाहब ने लंदन की राउंड टेबल कॉन्‍फरंस में स्‍वतंत्र मतदार संघ की मांग की थी। इस परिषद में उन्‍होंने दलितों के लिए स्‍वतंत्र मतदार संघ की मांग करते हुए अंग्रेजों को समझाने का कार्य किया। परंतु इसे लेकर महात्‍मा गांधी ने येरवडा में अनशन शुरू कर दिया था। आखीर में बाबासाहब और गांधी जी बीच पुना पैक्‍ट हुआ। पुना पैक्‍ट ने दलितों को आरक्षण देने की बात को स्‍वीकार किया था। बाद में संविधान लिखते वक्‍त बाबासाहब ने अनुसूचित जाति और जनजातियों को आरक्षण देने का काम किया। आज समाज की प्रगति का कारण आरक्षण है जिससे अनेक लोग बड़े-बड़े ओहदें पर पहुंचे हैं।

केंद्रीय राज्‍यमंत्री ने विश्‍वविद्यालय के प्रति आभार जताते हुए कहा कि हाल की परिस्थितियों को ध्‍यान में रखकर वेबिनार का आयोजन कर एक महत्‍वपूर्ण कार्य किया है। अंत में उन्‍होंने हिंदी भाषा के प्रति आदर व्‍यक्‍त करते हुए एक ही आशा हिंदी भाषा का उल्‍लेख कर अपनी भावनाएं व्‍यक्‍त की और कहा कि हिंदी को बढ़ावा देने के लिए महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय महत्‍वपूर्ण कार्य कर रहा है। उन्‍होंने कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्‍ल जी के प्रति भी आभार जताया। समतावादी भारत तथा सामाजिक आर्थिक समता प्रस्‍थापित करने तथा सभ्‍य और नितिमत्‍ता पर आधारित समाज की स्‍थापना के लिए हम सब को आगे आने का आहवान केंद्रीय राज्‍यमंत्री श्री रामदास आठवले जी ने अपने संबोधन में किया।

विषय प्रवर्तन करते हुए भारतीय जनसंचार संस्‍थान, नई दिल्‍ली के महानिदेशक प्रो.संजय द्विवेदी ने कहा कि बाबासाहब ने मूकनायक पत्रिका निकालकर मूक समाज को आवाज दी और उनके नायक बने। आत्‍मगौरव को जगाने हेतु उन्‍होंने इस पत्रिका को मराठी भाषा में चलाया। उनके विचारों को भारत ही नहीं अपितु अंतरराष्‍ट्रीय मीडिया में भी जगह प्राप्‍त होती थी। उनकी पत्रकारिता और चिंतन यात्रा संघर्ष का प्रतीक और प्रेरणा का कारण बनती है। प्रो. द्विवेदी ने कहा कि डॉ. आंबेडकर ने शोषणकारी प्रवृत्तियों से समाज को जागरूक करने का तथा समाज की आवाज को देश के सामने लाने का महत्‍वपूर्ण कार्य किया है।

कार्यक्रम की अध्‍यक्षता करते हुए विश्‍वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्‍ल ने कहा कि बाबासाहब द्वारा प्रारंभ किया गया ‘मूकनायक’ बहिष्‍कृत लोगों के अस्‍मिता की पहचान है और यह नई संभावनाओं का सिंहनाद है। उन्‍होंने मूकनायक के प्रारंभ को लेकर बाबासाहब की दृष्टि का उल्‍लेख करते हुए कहा कि एक समेकित भारत बनाने की दृष्टि उनकी पत्रकारिता में परिलक्षित होती है। बाबासाहब ने मूकनायक, समता, जनता और बहिष्‍कृत भारत जैसी पत्रिकाएं शुरू कर सरोकार की पत्रकारिता का व्‍यापक फलक तैयार किया। उन्‍होंने कहा कि देश की बड़ी आबादी को मुख्‍य धारा से अधिकार, सरोकार और पहचान से अलग रखा जाता है इसके क्‍या कारण है। इतने बड़े वर्ग को काटा जाता है जो अंतत: बहिष्‍कृत भारत ही कहलाएगा, प्रबुद्ध भारत नहीं। मूकनायक एक तरफ बहिष्‍कृत भारत का अस्‍मिता बोध है तो दूसरी तरफ प्रबुद्ध भारत की निर्मिति के लिए नए संभावनाओं का सिंहनाद है। बाबासाहब ने अनजाने में मूकनायक शीर्षक का चुनाव नहीं किया था। कुलपति प्रो. शुक्‍ल ने कहा कि आज परिवर्तन आया है उनमें 80 प्रतिशत हिस्‍सेदारी बाबासाहब के आंदोलनों की रही है। नए भारत को बनाने की दिशा में बाबासाहब की पत्रकारिता ने सामाजिक सुधार और राष्‍ट्रीय सरोकार का कार्य किया है। उनकी पत्रकारिता मनुष्‍य और समाज की गरिमा की निर्मिति का यत्‍न है । बाबासाहब ने आज़ाद भारत को सांस्‍कृतिक बनाने के लिए पत्रकारिता का सिंहनाद किया। कुलपति प्रो. शुक्‍ल ने कहा कि बाबासाहब की संपूर्ण पत्रकारिता और मूकनायक के परिप्रेक्ष्‍य में मानवता की दृष्टि क्‍या होगी यह देखना मूकनायक के सौं वर्ष का वास्‍तविक मूल्‍यांकन है।

स्‍वागत वक्‍तव्‍य मानविकी एवं सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ के अधिष्‍ठाता प्रो. कृपाशंकर चौबे ने किया। इस अवसर पर ‘स्‍त्रीकाल’ नई दिल्‍ली के संपादक संजीव चंदन, वर्धा के वरिष्‍ठ पत्रकार अशोक मेश्राम, विश्‍वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर डॉ. संदीप सपकाले ने भी अपने विचार प्रस्‍तुत किये। कार्यक्रम का संचालन सहायक प्रोफेसर डॉ. मीरा निचले ने किया तथा धन्‍यवाद ज्ञापन सहायक प्रोफेसर डॉ. रेणु सिंह ने प्रस्‍तुत किया ।

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