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आखिर क्यों खुद को “हेल्पलेस” पा रहे हैं… सभी डॉक्टर और चिकित्साकर्मी…?

आखिर क्यों खुद को “हेल्पलेस” पा रहे हैं… सभी डॉक्टर और चिकित्साकर्मी…?

बिलासपुर // इस स्टोरी के साथ दी गई तस्वीर को सतही रूप से देखने पर वह “कार्टून सरीखी” जरूर दिख रही है। लेकिन ध्यान से देखने पर वह (तस्वीर) एक ऐसे अंतहीन दर्द को बयां करती दिख रही है, जिससे, कोरोना महामारी के इस काल में देश के अधिकांश डॉक्टरों मर्माहत और व्यथित हैं। लगभग 20 दिन पहले फेसबुक पर चस्पा की गई इस तस्वीर से कोरोना महामारी के इस दौर में डॉक्टरों के “हेल्पलेस” होने की कडवी सच्चाई उजागर हो रही है। अपोलो अस्पताल बिलासपुर के सीनियर कंसलटेंट इन मेडिसीन, डॉ मनोज राय ने इसे फेसबुक पर अपलोड किया था। इस तस्वीर के जरिए डा मनोज राय ने यह दर्शाया है कि, उन्होंने अपने पूरे कैरियर में जितनी बार लोगों को “नो” (नहीं) कहा होगा… इससे कई गुना अधिक बार वे बीते कुछ दिनों में ही लोगों को “नो” कह चुके हैं।

महामारी के इस दौर में हर दिन, ना मालूम कितने लोग कोरोना संक्रमित किसी मरीज के लिए याचना के स्वर में, ये तीन ही बातें पूछा करते हैं।

(1) डॉक्टर साहब…क्या आप मुझे अस्पताल में एक बेड दिलाने में मदद करेंगे..? या कि (2)…डॉक्टर साहब..क्या आप मुझे किसी ऑक्सीजन सिलेंडर सप्लायर का नाम पता बता सकते हैं..? अथवा..(3).डॉक्टर साहब… क्या आप मुझे यह बता सकते हैं कि कोविड-19 की दवाईयां कहां मिलेंगी..? और हालात की मजबूरी में दुर्भाग्यवश वे इन तीनों ही सवालों के , बस यही तीन जवाब रहते है। (1)..नहीं, मुझे नहीं मालूम..! (2) मुझे कोई आईडिया नहीं है..? अथवा (3) मैं नहीं बता सकता..!

मरीजों या उसके परिजनों को, इतनी अधिक बार, इस तरह “ना” में जवाब देना किसी भी डॉक्टर के लिए बहुत ही पीड़ा दायक और मर्माहत करने वाली बेबसी है।।।। डॉ मनोज राय द्वारा फेसबुक में दी गई तस्वीर , आज के इस भीषण दौर में डॉक्टरों की इसी पीड़ा को उजागर कर रही है। इस तस्वीर के मुताबिक उन्होंने डॉक्टरी पेशे की शुरुआत से अब तक के पूरे कैरियर में कुल जमा जितनी बार लोगों को किसी बात के लिए “ना” कहते हुए इनकार किया होगा। उससे कई गुना इनकार, बीते 10 दिनों में ही उन्हे करना पड़ा है। यह कहने में कोई अतिरेक नहीं है कि कोरोना से संक्रमित मरीजों की तरह ही आज डॉक्टर भी बेबस और लाचार हैं।

हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि फेसबुक में चस्पा हुई इस तस्वीर में दिख रहा दर्द केवल अपोलो अस्पताल बिलासपुर के (सीनियर कंसलटेंट इन मेडिसिन) डॉक्टर मनोज राय का ही नहीं है। बीते 2 माह से भी अधिक समय से देश के तमाम डॉक्टरों को ऐसी ही बेबसी और लाचारी का हर-दिन और बार-बार एहसास हो रहा है।

दरअसल, चिकित्सकों का काम, सिर्फ और सिर्फ यही रहता है कि वे, जांच और उपचार, फिर सही दवा का चयन कर मरीजों का पूरी गंभीरता से केयर करें। लेकिन कोरोना संक्रमण के इस दूसरे दौर में देश भर के तमाम निजी और सरकारी अस्पतालों में कुछ ही दिनों के भीतर संक्रमित मरीजों का जितना बड़ा रैला पहुंच गया। उससे अस्पतालों में मौजूद तमाम चिकित्सकीय व्यवस्थाएं चरमरा गईं। मरीजों के लिए न तो ऑक्सीजन का इंतजाम हो पा रहा है और ना वेंटीलेटर वाले बेड का..! और अस्पतालों में मरीजों का सामना कर अस्पताल प्रबंधन से नहीं, वरन चिकित्सकों एवं चिकित्साकर्मियों से ही होता है.. इसलिए मरीज और उनके परिजन ऑक्सीजन अथवा वेंटिलेटर युक्त बेड की उम्मीद भी डॉक्टरों से ही कर बैठते हैं। जबकि अधिकांश डॉक्टर इस मामले में काफी हद तक “हेल्पलेस” रहते हैं। जरा बताइए कि, किसी अस्पताल में वेंटिलेटर युक्त बेड पहले से पूरी तरह फुल (भरे हुए)हों।

अब अगर वहां ऑक्सीजन बेड पर पड़े, किसी मरीज की हालत एकाएक खराब हो जाए और उसे वेंटिलेटर की जरूरत पड़ जाए। तो वहां ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टर क्या करेंगे। है कोई इसका जवाब..? जाहिर है कि वे पहले से वेंटीलेटर पर पड़े किसी मरीज को हटाकर तो इस नए मरीज को उसकी सुविधा नहीं दे सकते। ऐसी स्थितियो में ही डॉक्टर खुद को पूरी तरह “हेल्पलेस” पाते हैं। और दुर्भाग्य की बात यह है कि “ऐसी घातक परिस्थितियां” आजकल हर अस्पताल में तकरीबन रोज रोज की बात बन गई हैं।महामारी के इस जानलेवा और भयंकर दौर की शुरुआत के बाद पूरे देश के तमाम निजी और सरकारी अस्पतालों में काम करने वाले डॉक्टरों को, धर्मसंकट वाली, ऐसी ही समस्याओं से, तकरीबन हर रोज ही दो- चार होना पड़ रहा है। जिनके बारे में मेडिकल कॉलेज में भी उन्हें, कभी कुछ, पढ़ाया ही नहीं गया..! इसके चलते ही तमाम डॉक्टरों को, कोरोना संक्रमण से ग्रस्त मरीजों के इलाज के साथ-साथ विषम हालात और बौडम व्यवस्थाओं (जिसके वे जरा भी आदी नहीं रहते) से भी जूझना पड़ रहा है।

कायदे से निजी और सरकारी अस्पतालों के प्रबंधन को ऐसी महामारी के दौरान चिकित्सा कर्मियों और चिकित्सकों की तैनाती समेत, हर तरह की व्यवस्था और संसाधनों का इंतजाम तत्परता से करना चाहिए। कहा जाय तो, अस्पताल प्रबंधन का काम भी यही है। लेकिन अस्पताल प्रबंधन के इस काम में फेल होने पर डॉक्टरों को ऐसे अराजक और भीड़भाड़ वाले माहौल से जूझना पड़ रहा है। जिसमें वे खुद को “हेल्पलेस” पा रहे हैं।

आज के हालात से सीख ले कर स्वास्थ्य विभाग के सहयोग से सभी निजी व सरकारी अस्पतालों के प्रबंधन को चिकित्सा कर्मियों और चिकित्सकों की तैनाती समेत व्यवस्थाएं हर तरह की आपात स्थितियों से निपटने में सक्षम और चुस्त-दुरुस्त रखनी होंगी। तभी ऐसी किसी आपदा के समय, हमारे निजी और सरकारी अस्पताल, मरीजों के इलाज की चुनौतियों के सामने सीना तान कर खड़े हो सकेंगे।।। और तभी चिकित्सकों के साथ ही चिकित्सा कर्मियों को भी ऐसी परिस्थितियों का सामना नहीं करना पड़ेगा, जिनमें वे खुद को,आज की तरह हेल्पलेस महसूस करें..!

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