आपातकाल राष्ट्र के लिये एक काला अध्याय…
व्यक्ति की अभिव्यक्ति की आजादी को छिनने के रुप में याद दिलाता रहेगा आज का काला दिन- अमर अग्रवाल…
रायगढ़ // भारतीय जनता पार्टी रायगढ़ द्वारा आपातकाल (काला दिवस) विषय को लेकर पत्रकार वार्ता आयोजित की थी जिसमें भाजपा सरकार के पूर्व केबिनेट मंत्री अमर अग्रवाल मुख्य वक्ता थे। प्रदेश नेतृत्व ने आज के आपातकाल (काला दिवस) को लेकर सभी जिलो में पत्रकार वार्ता आयोजित करने हेतु आह्वान किया था। शुक्रवार की पत्रकार वार्ता को संबोधित करते हुये अमर अग्रवाल ने कहा कि हम सब जानते हैं कि 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक का 21 महीने की अवधि में भारत में आपातकाल घोषित था। तत्कालिन राष्ट्रपति फखरुदीन अली अहमद ने तब के प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कहने पर भारतीय संविधान की धारा 352 के अधीन आपातकाल लगा दिया था। स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे अलोकतांत्रिक काल था आपातकाल में चुनाव स्थगित हो गये तथा नागरिक अधिकारों को समाप्त करके मनमानी की गई। लोकनायक जयप्रकाष नारायण ने इसे ’भारतीय इतिहास की सर्वाधिक काली अवधि’ कहा था।
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के इस निर्णय से पूरे देश में भयकंर आक्रोष था। विगत चुनाव में इंदिरा गांधी के प्रतिद्वंदी रहे राजानारायण की चुनाव याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा इंदिरा गांधी के खिलाफ फैसला देने पर उनके हाथ से सत्ता निकलती दिखी और तब 25 जून 1975 की रात को राष्ट्रपति फखरुदीन अली अहमद ने प्रधानमंत्री की सलाह पर उस मसौदे पर मुहर लगाते हुये देश में संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत आपातकाल घोषित कर दिया। लोकतंत्र को निलंबित कर दिया गया। आपातकाल की घोषणा होते ही स्वयंसेवकों और तमाम गैर कांग्रेसी नेताओं की गिरफ्तारी शुरु हो गयी। उन पर प्रताड़नाओ का सिलसिला सा चल पड़ा। देश भर से लाखो लोग सत्याग्रह करके जेल गये और लाखो को गिरफ्तार किया गया। लोकनायक जयप्रकाष नारायण, मोरारजी भाई देसाई, अटलबिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, अरुण जेटली, मलकानी. जॉर्ज फर्नाडिस, नीतीष कुमार, सुषील मोदी, रामविलास पासवान, शरद यादव, रामबहादुर राय समेत हजारो लोग गिरफ्तार कर लिये गये थे। अविभाजित मध्यप्रदेष से भी सारे नेता गिरफ्तार कर लिये गये थे।
दशको से हमें ’सेक्युलरिज्म और सोषलिज्म’ जैसे शब्दो से डराने की कोषिष की जाती है। जबकि तथ्य यह है कि ये दोनो शब्द आपातकाल से पहले हमारे संविधान का हिस्सा थे ही नहीं। आपातकाल में जब सारी ताकतें केवल एक व्यक्ति में केन्द्रित कर दी गयी थी, राष्ट्रपति, न्यायपालिका, संसद समेत सभी संवैधानिक निकाय निष्प्रभावी कर दिये गये थे, तक ’ पंथनिरपेक्षता’ और ’समाजवाद’ इन दोनो शब्दो को संविधान के प्रस्तावना में चुपके से डाल दिये गये थे।
यह खासकर याद रखना होगा कि आपातकाल के दौरान अभिव्यक्ति की आजादी को भी बुरी कुचल दिया गया था। मीडिया पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाया गया था। इमरजेंसी लगाने के तुरंत बाद अखबारो के दफ्तरो की बिजली काट दी गई, ताकि ज्यादातर अखबार अगले दिन आपातकाल का समाचार ना छाप सकें। आपातकाल के दौरान 3801 अखबारो को जब्त किया गया। 327 पत्रकारों को मीसा कानून के तहत जेल में बंद कर दिया गया। 290 अखबारो में सरकारी विज्ञापन बंद कर दिये गये। ब्रिटेन के ज्ीम ज्पउमे और ज्ीम ळनंतकपंद जैसे कई समाचार पत्रों के 7 संवाददाताओं को भारत से निकाल दिया गया। रॉयटर्स सहित कई विदेषी न्युज एजेंसियों के टेलीफोन और दूसरी सुविधायें काट दी गई। 51 विदेषी पत्रकारों की मान्यता छीन ली गई। 29 विदेषी पत्रकारों को भारत में एंट्री देने से मना कर दिया गया।
छत्तीसगढ़ समेत जिन मुटठी भर प्रदेषो में कांग्रेस या उसके प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष समर्थित दलों का शासन है, वहां क्या हो रहा है, देख लीजिये। महाराष्ट्र में किस तरह से असहमति के कारण अभिनेत्री का घर ढाह दिया जाता है, पत्रकारो के साथ कैसा सलूक होता है। पालघर के साधुओं को भीड़ द्वारा लिंच कर देने की खबर दिखाने के कारण अर्णव गोस्वामी और उनकी टीम के साथ कांग्रेस समर्थित सरकार ने वंहा कैसा बर्बर अत्याचार किया, यह उदाहरण सामने है, ये तमाम चीजें महज संयोग नहीं बल्कि प्रयोग है। यही आपातकाल वाली कांग्रेस की मूल वृति है। आप पष्चिम बंगाल का उदाहरण देख लीजिये। कांग्रेस-कम्युनिस्टों के प्रत्यक्ष समर्थन से चुन कर आयी सरकार सत्ता में आते ही कार्यकताओं द्वारा किस नृषंस तरीके से हत्या, बलात्त्कार और लूट आदि को अंजाम दे रही है। वास्तव में ऐसे तमाम उदाहरण आपातकाल जैसी मनोवृत्ति के ही हैं।
प््रादेष की अभी की कांग्रेस सरकार का उदाहरण तो सबसे नया और अनूठा है जहां किसी ट्वीट को रीट्वीट तक करना बड़ा अपराध बना दिया जाता है। जहां शासन के संसाधनो और समय का पूरा उपयोग भाजपा प्रवक्ता की आवाज को पुलिसिया डर दिखा कर दबाने, राष्ट्रीय पत्रकारों पर सौ-सौ मुकदमें दर्ज करने में लगा दिया जाता है। जहां कांग्रेस के कार्यकर्ताओ द्वारा पुलिस स्टेषन के सामने ही पत्रकारो से बर्बरता से हिंसा तक की जाती है महज इसलिये क्योंकि वह आपसे असहमत है और आप वैसे ही उनकी अभिव्यक्ति की आजादी को खत्म करना चाहते हैं जैसा इंदिरा गांधी ने किया था।
आपातकाल के संदर्भ में एक खास बात हमें बार-बार स्मरण रखने की है कि आज 2021 में हम जिस आजादी की हवा में सांस ले रहे हैं, यह आजादी हमने कांग्रेस से लड़ के हासिल की है। फिंरगियों-अंग्रेजो से गांधी-सुभाष के नेतृत्व में लड़कर हमें जो आजादी मिली थी, वह 1975 में हमने खो दी थी। कांग्रेस ने वह आजादी हमसे छीन ली थी यह दुसरी आजादी हमने कांग्रेस से लड़ कर पायी है, कांग्रेस ने अपनी आजादी की विरासत को, तब ही खत्म कर दिया था। भारतीय संविधान और लोकतंत्र आज के भाजपा (तब का भारतीय जनसंघ) के इतिहास पुरुष अटल-आडवाणी-नानाजी जैसे राष्ट्रवादियों का हासिल किया लोकतंत्र है। लोकनायक जयप्रकाष नारायण का कमाया लोकतंत्र है यह जिस का आज हम आनंद ले रहे है। आज का लोकतंत्र कांग्रेस के कारण नहीं, बल्कि उसके बावजूद कायम है। बात चाहे इस आपातकाल की हो या पहली आजादी के बाद देष के विभाजन की, या उसके बाद भी, कांग्रेस ने लगातार यह साबित किया है कि भारतीय लोकतंत्र के पवित्र शब्दो का, भारत के लोगो द्वारा आत्मार्पित भारत के संविधान की आत्मा का, देष की एकता और अखण्डता का कांग्रेस के लिये तब कोई महत्व नहीं रहता है जब उसकी सत्ता नहीं हो या जानेवाली हो। बांटो और राज करो की विभाजनकारी सिद्धांत हमेषा ही कांग्रेस, खासकर नेहरु परिवार का मूलमंत्र रहा है।
हमने अपने पुरखो के बलिदान से भले आजादी दुबारा हासिल करने से सफलता पायी हो, लेकिन इस आजादी पर खतरे हमेषा बने रहेंगे, जब तक कांग्रेस कायम है आपातकाल भले 1977 में खत्म हो गया, लेकिन आपातकाल की मनोवृत्ति वाले तत्व और संगठन आज भी मौजूद हैं, हर क्षण-प्रतिपल लोकतंत्र विरोधी तत्वों के खतरे के प्रति सावधान रहने की जरुरत है। अगर आप इतिहास को याद नही रखेंगे तो उसे बार-बार दुहराने पर विवष होंगे। आपातकाल का यह इतिहास हमें इसलिये भी बार-बार हर बार स्मरण रखना चाहिये ताकि ऐसा कलंकित इतिहास कभी अब फिर दुहराने का दुस्साहस कांग्रेस या उस मनोवृत्ति वाला कोई दल कभी अब करने में सफल नहीं हो पाये। सत्ता के मद में चूर होकर कांग्रेस या ऐसा कोई दल फिर से इस भयानक इतिहास को दुहराने का साहस नहीं कर पाये, इस लिये हमेषा सचेत रहने की जरुरत है।
प्रेसवार्ता में जिलाध्यक्ष उमेष अग्रवाल, प्रदेश कार्यसमिति सदस्य गुरुपाल सिंह भल्ला, राजेष शर्मा, ब्रजेष गुप्ता, श्रीकांत सोमावार, गोपाल शर्मा, डॉ. जवाहर नायक, अरुणधर दीवान, सतीष चन्द्र बेहरा, आलोक सिंह, सुभाष पाण्डेय, ज्योति पटेल, आषीष ताम्रकार, कौषलेष मिश्रा, चन्द्रप्रकाष पाण्डेय, मंजुल दीक्षित, श्रीमती केराबाई मनहर, श्रीमती सुनीति राठिया, जैनेष्वर मिश्रा, मनोज प्रधान, अरुण कातोरे, अनुपम पाल, कैलाष पंडा, ज्ञानेष्वर सिंह गौतम, श्रीमती शीला तिवारी, पुनम सोलंकी, मेहरुम निषा, श्रीमती शोभा शर्मा, श्रीमती पिंकी पंडा, नेहा देवांगन, श्रीमती पंकजलता यादव, श्रीमती बीना चौहथा, श्रीमती लक्ष्मी विष्वास, श्रीमती शकुंतला रतेरिया, अस्मिता सिंह, दिव्या महंत, पूजा चौबे, कल्पना यादव उपस्थित थे।
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