लोकसभा और विधानसभा की दावेदारी कर चुके कई नेता अब पार्षद चुनाव लड़ने की तैयारी में ।।
महापौर और नगरपालिका व नगर पंचायत का अध्यक्ष बनना है तो पहले जीतना होगा पार्षद पद का चुनाव ।।
शशि कोंन्हेर
बिलासपुर // नगरीय निकाय चुनावो को अप्रत्यक्ष मतदान की पद्धति से कराए जाने की पहल ने भाजपा व कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं को असमंजस में डाल दिया है। इन नेताओं के सामने मुश्किल यह है कि अब उन्हें महापौर अथवा नगर पालिका के अध्यक्ष पद की दावेदारी करने के पहले वार्ड पार्षद का चुनाव लड़ना और जीतकर दिखाना होगा।। इनमे से अनेक ऐसे भी नेता है जिन्होंने हाल ही में सम्पन्न हुए प्रदेश विधानसभा और उसके बाद हुए लोकसभा चुनावों में पार्टी
टिकट के लिये जोरशोर से दावा और आवेदन किया था। लेकिन इनमे पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दी। जिसके कारण अब वे महापौर तथा नगरीय निकाय के अध्यक्ष पद पर दांव लगाने की तैयारी कर रहे थे।
लेकिन अब महापौर व नगर पंचायत, नगरपालिका अध्यक्ष पद का चुनाव अप्रत्यक्ष मतदान से कराने की सरकारी तैयारी ने उन्हें धर्म संकट में डाल दिया है। इस नए परिप्रेक्ष्य में ऐसे तमाम नामी गिरामी दावेदारों को पहले पार्टी से वार्ड पार्षद पद की टिकट हासिल करने के लिए जोर लगाना होगा।। और अगर यह टिकट हासिल नही हो पाई तो घोर बेइज्जती और टिकट किसी तरह मिलने के बाद वार्ड पार्षद चुनाव में हार गए तो और बेइज्जती।। पार्टी के लोग और विरोधी खुले आम कहते फिरेंगे की कहां तो लोकसभा , विधानसभा टिकट मांगने के साथ ही महापौर व निकाय अध्यक्ष के लिए दावेदारी कर रहे थे और देख लो पार्षद का चुनाव भी नहीं जीत पाए। फिर हर दावेदार का विरोधी खेमा यह साजिश तो करेगा ही कि उसे, एक तो पार्षद की ही टिकट न मिल पाए और यदि किसी तरह मिल भी गई तो उसे वार्ड की लड़ाई में ही धूल चटवा दो।।। जिससे आगे के लिए टंटा साफ हो जाएगा। उदाहरण के लिए बिलासपुर नगर निगम की बात करें तो यहां,,
कांग्रेस से राजेश पांडे, शेख गफ्फार, विजय केशरवानी,चीका बाजपेयी,रविन्द्र सिंह,शेख नजीरुद्दीन व महेश दुबे टाटा समेत अनेक दावेदार महापौर की टिकट के लिए दावा कर रहे थे। अब इन सभी को नगर निगम के किसी सामान्य वार्ड से पार्षद की टिकट हासिल कर पहले पार्षद बनना होगा।। इसके बाद ही वे महापौर की लड़ाई में टिकट मांगने के हकदार हो सकेंगे।। इसीतरह भाजपा में भी महापौर पद के दावेदार माने जा रहे लोगो यथा राजेश सिंह, सुरेंद्र गुम्बर, स्नेहलता शर्मा,रामदेव कुमावत, गोपी ठारवानी, मनीष अग्रवाल व प्रवीन दुबे सहित सभी नेताओं को पहले किसी न किसी वार्ड से पार्षद का प्रत्याशी बनकर चुनाव लड़ना होगा।। उसके बाद ही वे महापौर पद के लिए टिकट मांगने तथा चुनाव लड़ने के पात्र हो पायेंगे।। इसमें सबसे बड़ा खतरा पार्षद चुनाव हारने का है। अगर इनमे से किसी की पार्षद चुनाव में हार हुई तो उनकी न केवल महापौर पद की दावेदारी समाप्त हो जाएगी। वरन उन्हें भविष्य में विधानसभा या लोकसभा चुनाव की टिकट मांगने के लिए भी बहुत कुछ सोचना पड़ेगा।
कमोबेश यही स्थिति बिलासपुर समेत प्रदेश के सभी जिलों की नगरपालिकाओं और नगर पंचायतों में रहेगी।। वहां भी महापौर अथवा पालिका व नगर पंचायत अध्यक्ष पद से पहले वार्डों में जमकर घमासान मचेगा।। उसमे जो जीतकर आएंगे उनमे से ही किसी को मुक़द्दर का सिकंदर बनने का मौका मिल पायेगा।
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