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वैश्विक रंगमंच की मराठी धरोहर के रूप में स्थापित होने वाला ग्रंथ : डॉ. निशिगंधा वाड… डॉ. सतीश पावडे लिखित ‘मराठी रंगभूमी आणि ॲब्सर्ड थिएटर’ ग्रंथ का विमोचन…

वैश्विक रंगमंच की मराठी धरोहर के रूप में स्थापित होने वाला ग्रंथ : डॉ. निशिगंधा वाड…

डॉ. सतीश पावडे लिखित ‘मराठी रंगभूमी आणि ॲब्सर्ड थिएटर’ ग्रंथ का विमोचन…

वर्धा // भारतीय रंगमंच के दालानों में महत्त्वपूर्ण दालान के रूप में मराठी रंगमंच का स्वरूप बड़ी तेज़ी से बदल रहा है. पश्चिम साहित्य जैसी नवीनता मराठी रंगभूमि ने भी आत्मसात की है. आज एक ओर प्रायोगिक रंगभूमि अपनी नवनवीन कलात्मक भानों को आविष्कृत कर रही है और दूसरी ओर विसंगति में ही सुसंगति की खोज या अन्वेषण करने वाला ‘मराठी रंगभूमी आणि ॲब्सर्ड थिएटर’ यह वैश्विक रंगभूमि की मराठी धरोहर के रूप में स्थापित होने वाला ग्रंथ है. यह विचार सुप्रसिद्ध अभिनेत्री व लेखिका डॉ. निशिगंधा वाड ने व्यक्त किये.। विश्व रंगभूमि दिवस के अवसर पर भारतीय साहित्य, कला व सांस्कृतिक प्रतिष्ठान “शब्दसृष्टि” और “मनोहर मीडिया” द्वारा आयोजित डॉ. सतीश पावडे लिखित व नेक्स्ट पब्लिकेशन, पुणे प्रकाशित ‘मराठी रंगभूमी आणि ॲब्सर्ड थिएटर’ इस ग्रंथ का दूरदृश्य प्रणाली द्वारा विमोचन हाल ही में संपन्न हुआ।

समारोह के अध्यक्ष प्रसिद्ध विचारवंत नाटककार व उपन्यासकार संजय सोनवणी थे. कार्यक्रम में लेखक डॉ. सतीश पावडे, प्रमुख अतिथि के रूप में कोलंबो के डे-ड्रीम थिएटर्स की संचालिका तिलिनी दर्शनी मुनसिंह लिव्हेरा, विशेष अतिथि के रूप में महाराष्ट्र राज्य सांस्कृतिक कार्य संचालनालय के संचालक विभीषण चवरे तथा मराठा सेवा संघ के संस्थापक पुरुषोत्तम खेडेकर और वक्ता के रूप में नाटककार, समीक्षक व लेखक राजीव जोशी, चित्रकार व लेखक विजयराज बोधनकर, संगीतसूर्य केशवराव भोसले सांस्कृतिक परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष दिलीप साळुंके, बहुजन रंगभूमि नागपुर के अध्यक्ष व नाटककार, दिग्दर्शक वीरेंद्र गणवीर, आदिवासी कला व साहित्य की अभ्यासक डॉ. मंदा नांदुरकर आदि उपस्थित थे।

इस अवसर पर संजय सोनवणे ने कहा कि इस ग्रंथ द्वारा पाठकों को मराठी ॲब्सर्ड रंगभूमि के इतिहास का परिचय प्राप्त होता है. इस ग्रंथ को तत्त्वचिंतन की अद्भुत दृष्टि प्राप्त हुई है।
विजयराज बोधनकर ने कहा कि मुक्त आशय से निर्मित यह ऐसा ॲब्सर्ड कलाप्रकार है जो मानवी विचारों के प्रचार-प्रसार के मूल में सामाजिक, मानसिक प्रक्रिया की जटिलता को व्यक्त करने का सामर्थ्य रखता है.
वीरेंद्र रणवीर ने कहा कि मानवी जीवन की निरर्थकता,विसंगति व मिथ्या भान का अहसास कराने वाला तत्त्वज्ञान यानी ॲब्सर्ड थिएटर है.
डॉ. मंदा नांदुरकर ने अपने वक्तव्य में कहा कि ‘मराठी रंगभूमी आणि ॲब्सर्ड थिएटर’ इस ग्रंथ द्वारा लेखक डॉ. सतीश पावडे ने मानवी जीवन की खोज की है. इस ग्रंथ में मराठी नाटकों की संहिता व प्रयोग का चिकित्सात्मक विश्लेषण किया गया है. यह ग्रंथ मराठी रंगभूमि को एक नया ॲब्सर्ड राजाश्रय दिलाने में मील का पत्थर साबित होगा.
समारोह का प्रास्ताविक “शब्दसृष्टि” के संस्थापक-अध्यक्ष व “मनोहर मीडिया” के संचालक प्रा. डॉ. मनोहर ने किया. उन्होंने कहा, रंगभूमि के इतिहास से लेकर आज की रंगभूमि, मराठी नाटककारों ने लिखे नाटक, उनकी मर्यादाएं, प्रेक्षक की मनोभूमिका इन सभी मुद्दों पर सविस्तार विवेचन होना ज़रूरी बन गया है. अंग्रेजी नाटकों का तो मराठी में अनुवाद हुआ है परंतु मराठी नाटकों का अंग्रेजी में अनुवाद हुआ दिखायी नहीं देता।

समारोह का सफल संचालन…

“शब्दसृष्टि” के न्यासी व संयोजक प्राचार्य मुकुंद आंधळकर ने किया. आभार “शब्दसृष्टि” पत्रिका की प्रबंध संपादक व संयोजक आशा रानी ने माना. समारोह की सफलता में “शब्दसृष्टि” के प्रसिद्धि-प्रमुख व समारोह समन्वयक डॉ. अनिल गायकवाड, समारोह के तंत्र-निर्देशक शैलेश सकपाळ, रवींद्र महाडिक आदि का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा. समारोह में नाट्य क्षेत्र के अनेक मान्यवर, पत्रकार और परिवार जन बड़ी संख्या में उपस्थित थे।

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