बिलासपुर // छत्तीसगढ़ के बिलासपुर सीएमएचओ कार्यालय में 4 करोड़ 90 लाख के घोटाले की पुष्टि हो गई है। हाईकोर्ट ने मामले में राज्य शासन को तत्कालीन सीएमएचओ मधुलिका सिंह के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया है। राज्य शासन ने माना है कि सीएमएचओ कार्यालय में ढाई करोड़ रुपए का घोटाला हुआ।
सीएमएचओ कार्यालय में हुए घोटाले को लेकर बिलासपुर निवासी पत्रकार दिलीप यादव व रायपुर निवासी एस संतोष कुमार ने अपने वकील योगेश्वर शर्मा के माध्यम से हाईकोर्ट में जनहित याचिका लगाई थी। मामले की सुनवाई गुरुवार को चीफ जस्टिस पीआर रामचंद्र मेनन व जस्टिस पीपी साहू की युगलपीठ में हुई। कोर्ट ने इस मामले में से सम्बंधित दस्तावेज पुलिस महकमे के आला अफसरों आईजी और एसपी को देने कहा है। हाईकोर्ट की तरफ से कहा गया है कि राज्य शासन भी इस मामले में दोषी के खिलाफ विभागीय जांच, वसूली व अन्य कार्रवाई करें। इसके अलावा याचिकाकर्ताओं को आपराधिक और सर्विस मेटर दायर करने की भी छूट हाईकोर्ट ने दी है।
अलग – अलग योजनाओं में की गई वित्तीय अनियमितता
कार्यालय महालेखाकार (लेखा परीक्षा) छत्तीसगढ़ रायपुर की एक टीम ने सीएमएचओ कार्यालय बिलासपुर द्वारा 1 सितंबर 2003 से 31 दिसंबर 2004 तक शासन से मिले करोड़ों रुपए के खर्च की लेखा परीक्षा की है। उस समय बिलासपुर में डॉ. मधुलिका सिंह सीएमएचओ थीं। वर्तमान में वे संयुक्त संचालक स्वास्थ्य सेवाएं बिलासपुर और सिविल सर्जन हैं।
टीम ने लेखा परीक्षा का काम 7 जनवरी 2005 से 20 जनवरी 2005 के बीच पूरा किया है। महालेखाकार द्वारा राज्य शासन को भेजी गई रिपोर्ट में बताया गया है कि कई योजनाओं में वित्तीय अनियमितता करते हुए डॉ. सिंह ने राज्य शासन और केंद्र सरकार को 4 करोड़ 90 लाख 35 हजार 371 रुपए का चूना लगाया है। आइए नजर डालते हैं गड़बड़ियों पर…
इंदिरा स्वास्थ्य मितानिन कार्यक्रम में भी 45.20 लाख की गड़बड़ी
महालेखाकार ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि इंदिरा स्वास्थ्य मितानिन कार्यक्रम के क्रियान्वयन में 45.20 लाख रुपए की वित्तीय अनियमितता पाई गई है। सीए ने 2002-03 और 2003-04 का जो लेखा प्रमाणित किया है, उसे ब्लॉक वाइज बनाया गया और वह भी बजट के हिसाब से राशि खर्च दर्शाकर। कार्यक्रम के सारे भुगतान नगद किए गए हैं। सीएम द्वारा प्रमाणित व्यय के अधिकांश व्हाउचर बीएमओ की ओर से भुगतान के लिए पारित नहीं किए गए थे। फिर भी उसे व्यय में शामिल कर लिया गया।
अंधत्व निवारण कार्यक्रम में 41.95 लाख का घोटाला
महालेखाकार की रिपोर्ट के अनुसार बिलासपुर जिले में नेत्र ऑपरेशन प्रगति प्रतिवेदन 2002-03 और 2003-04 में प्रगति शून्य दर्शाया गया है। इससे स्पष्ट है कि इकाई का अमला शासकीय किए बिना ही वेतन लेता रहा। 23 अगस्त 2003 से 16 जून 2004 तक के सीएमएचओ कार्यकाल में डॉ. सिंह ने इस मद से 41.95 लाख रुपए की वित्तीय अनियमितता की है। रिपोर्ट में बताया गया है कि नेत्र इकाई के प्रभारी रहे डॉ. सुजय मुखर्जी ने इकाई का प्रगति प्रतिवेदन, उपस्थिति पंजी और अन्य शासकीय व्यय संबंधी अभिलेख देने से इनकार कर दिया। सीएमएचओ कार्यालय की ओर से जिला अंधत्व निवारण समिति को 27.50 लाख रुपए भुगतान किया गया था, लेकिन समिति ने अभिलेख पेश करने से इनकार कर दिया। मोतियाबिंद ऑपरेशन कम किया और भारत सरकार से 26.50 लाख रुपए अधिक ले लिए गए।
नसबंदी ऑपरेशन में 14.96 लाख की अनियमितता
सीएमएचओ कार्यालय की ओर नसबंदी ऑपरेशन के एवज में 14.96 लाख रुपए का अधिक भुगतान किया गया है। बताया गया है कि महिला और पुरुष नसबंदी ऑपरेशन में तय दर से 8.47 लाख रुपए अधिक खर्च किए गए। इसी तरह से बेंडेज व दवाइयों पर निर्धारित दर से अधिक दर पर खरीदी कर 6.48 लाख रुपए की अनियमितता की गई है। महालेखाकार ने अपनी टीप में लिखा है कि कार्यालय प्रमुख होने के नाते सीएमएचओ रहीं डॉ. सिंह परिवार कल्याण कार्यक्रम के क्रियान्वयन में असफल रही हैं।
स्वीकृत पद से अधिक स्टॉफ रखकर किया 13.62 लाख का भुगतान
एजी ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि वित्त एवं कोष नियम के विपरीत जाकर सीएमएचओ ने स्वीकृत पद से अधिक स्टॉफ रखे और इनके लिए वेतन व भत्तों का आहरण कर राज्य शासन को 13.52 लाख रुपए की क्षति पहुंचाई है। सीएमएचओ ने 4.81 लाख रुपए का सीधा गबन किया है। इसकी सूचना विभाग के उच्च अधिकारियों और महालेखाकार को नहीं दी है। उन्होंने अल्प अवधि के दौरान कालातित होने जा रही दवाइयों की खरीदी 10.73 लाख रुपए में की है।
दो करोड़ 50 लाख का कोई हिसाब नहीं
महालेखाकार ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि आरसीएच कार्यक्रम के तहत सीएमएचओ कार्यालय को दो करोड़ 50 लाख 35 हजार 371 रुपए मिले थे। यह राशि व्यय बताई गई, लेकिन इसका अभिलेख और व्यय के व्हाउचर गायब हैं। महालेखाकार के अनुसार आरसीएच कार्यक्रम सीएमएचओ के माध्यम से संचालित था। इसलिए पूरी जानकारी उपलब्ध कराने की जवाबदारी सीएमएचओ की है। एजी ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट किया है कि लेखा परीक्षा को व्यय के व्हाउचर उपलब्ध नहीं कराने से साफ है कि कार्यक्रम पर किया गया खर्च संदेहजनक है। कार्यक्रम का प्रगति प्रतिवेदन न तो भारत सरकार को भेजा गया और न ही अभिलेख लेखा परीक्षा को कभी पेश किए गए हैं।
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