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“मिशन स्वराज” के मंच पर “वाणी और लेखनी की स्वतंत्रता” विषय पर हुई सार्थक वर्चुअल चर्चा – प्रकाशपुन्ज पाण्डेय

“मिशन स्वराज” के मंच पर “वाणी और लेखनी की स्वतंत्रता” विषय पर हुई सार्थक वर्चुअल चर्चा – प्रकाशपुन्ज पाण्डेय

समाजसेवी और राजनीतिक विश्लेषक प्रकाशपुन्ज पाण्डेय ने मीडिया के माध्यम से बताया कि आज शनिवार, ५ सितंबर २०२० को दोपहर २ बजे एक वर्चुअल चर्चा का आयोजन किया गया, जिसका विषय था, “वाणी और लेखनी की स्वतंत्रता”।

प्रकाशपुन्ज पाण्डेय ने बताया कि इस तरह के विषयों की बौद्धिक स्तर की वर्चुअल चर्चाओं के लिए ही यह मंच है। आज की इस चर्चा में शामिल होने वाले वक्ताओं के नाम इस प्रकार हैं –
कोटा नीलिमा – वरिष्ठ पत्रकार, लेखिका, समाजसेविका और पेंटिंग आर्टिस्ट, नई दिल्ली
अनुरंजन झा – वरिष्ठ पत्रकार, सीईओ – मीडिया सरकार / द वेब रेडियो
बाबूलाल शर्मा – वरिष्ठ पत्रकार व समाजशास्त्री
सच्चिदानंद उपासने – प्रवक्ता व वरिष्ठ नेता, भाजपा
आर डी सी पी राव – प्रदेश सचिव, छत्तीसगढ़ सीपीआई
प्रकाशपुन्ज पाण्डेय – समाजसेवी, राजनीतिक विश्लेषक, फाउंडर – मिशन स्वराज २०२०

इस चर्चा में सभी वक्ताओं ने संबंधित विषय पर अपने विचार अलग-अलग दृष्टिकोणों से रखे। सभी ने कहा कि वाणी और लिखने की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आज़ादी प्रत्येक भारतीय नागरिक का मूलभूत अधिकार है और प्रत्येक व्यक्ति को अपनी बात रखने और लिखने का पूरा अधिकार है। लेकिन मौजूदा समय में परिस्थितियाँ कुछ भिन्न दिखाई पड़ती हैं, लेकिन यह भी उतना ही सच है यह परिस्थितियाँ एक दिन में उत्पन्न नहीं हुई हैं। इसका मतलब साफ़ है कि हमने इस विषय पर पूर्ण रूप से गंभीरता से ध्यान नहीं दिया और निरंतर इसका रूप विकराल होता गया। लेकिन अब समय आ गया है की जनता अपना अधिकार जाने और अपने अधिकार का सार्थक उपयोग करे। इस चर्चा से एक और बात समय निकल कर आई की अभिव्यक्ति का आज़ादी का मतलब यह भी नहीं है कि आप बिना तथ्यों के किसी पर आरोप लगाएं या अपनी भड़ास निकाल दें।

चर्चा में शामिल सभी विद्वान वक्ताओं ने एक सुर में कहा कि आज पत्रकारिता का स्तर बहुत हद तक गिर चुका है। पत्रकारिता में अब लेखनी कम और पैसा – रूपया, लाभ – हानि, लोभ – द्वेष और बड़े-बड़े व्यापारिक संस्थाओं ने जगह ले ली है। इसलिए अब पत्रकार, पत्रकारिता छोड़कर पत्रकार की नौकरी कर रहे हैं जिस पर हम सभी पत्रकारों को गंभीरता से चिंतन मनन करने की आवश्यकता है। यह भी बात सामने आई की हो सकता है 2047 तक हम अप्रत्यक्ष रूप से गुलाम बन जाएं। यह बात सभी ने बहुत ही ज़िम्मेदारी से कही। इसीलिए सब ने देश की जनता से आग्रह किया है कि वह अपनी ज़िम्मेदारी को समझें। सही गलत की पहचान करें और सवाल पूछें। क्योंकि सवाल नहीं पूछेंगे शासन और सत्ता बेपरवाह होती चली जाएगी। इसीलिए संवाद हमेशा बना रहना चाहिए, भले ही उसके लिए कितनी भी बड़ी आप ऊंची क्यों ना देना पड़े!

प्रकाशपुन्ज पाण्डेय ने बताया कि आज की इस चर्चा की रिकॉर्डिंग को फेसबुक के माध्यम से “मिशन स्वराज” के पेज पर सभी लोगों के लिए पोस्ट कर दिया गया है। इसी कड़ी में प्रत्येक रविवार और शनिवार को अलग-अलग विषयों पर चर्चाएँ निरंतर जारी रहेंगी।

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