बिलासपुर // दिल्ली दंगो को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका लगाने वाले हर्ष मंदर बिलासपुर संभाग के कमिश्नर रह चुके हैंऔर उनके द्वारा ही दिल्ली हाईकोर्ट में दायर इस याचिका के कारण दिल्ली हाईकोर्ट के “जस्टिस एस मुरलीधरन ने सरकार और पुलिस के खिलाफ तल्ख टिप्पणियां” की हैं।
दिल्ली दंगों को लेकर हाईकोर्ट के जस्टिस एस मुरलीधर ने उनकी ही याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली पुलिस और सरकार के खिलाफ काफी तल्ख टिप्पणियां की हैं। जिसमें यह भी कहा कि दिल्ली के हालात 1984 जैसे नहीं होने देंगे। दिल्ली हाईकोर्ट में देश की राजधानी के हालात और वहां नेताओं के भड़काऊ बयानों तथा पुलिस की भूमिका को लेकर दायर इस याचिका पर जस्टिस एस मुरलीधर ने उक्त तल्ख टिप्पणी की। यह याचिका दायर करने वाले हर्ष मंदर कभी बिलासपुर के कमिश्नर हुआ करते थे। उस दौर में अंबिकापुर समेत पूरा सरगुजा भी बिलासपुर कमिश्नरी का ही हिस्सा हुआ करता था। हर्षमंदर बिलासपुर में 27 फरवरी 1996 से 8 सितंबर 1997 तक कमिश्नर के पद पर पदस्थ रहे हैं। इस दौरान उनकी विशेष कार्य शैली और गरीबों तथा आदिवासियों को लेकर उनकी संवेदनशीलता लोगों को काफी प्रभावित करती थी।दबे-कुचले लोगों और यहां तक कि कुष्ठ रोग से ग्रस्त लोगों की बस्तियों व कुष्ठ रोगियों को लेकर उनकी हमदर्दी लोगों और
मातहतअधिकारियों के लिए काफी आश्चर्यजनक थी। वे कुष्ठ रोगियों की बस्ती में कुष्ठ रोग के प्रति लोगों की भ्रांतियां दूर करने के हिमालयी प्रयास किया करते थे। उनका कहना था कि कुष्ठ रोगियों को तो ठीक किया जा सकता है।लेकिन कुष्ठ रोग को लेकर लोगों के मन में जो भ्रांतियां हैं,उसे दूर करना बहुत कठिन है। बिलासपुर में अपनी पदस्थापना के दौरान कई बार वे चांपा की उन बस्तियों में गए जहां कुष्ठ रोगी निवास करते हैं। इस दौरान वे न केवल कुष्ठ रोगियों के हाथों का ही खाना खाया करते थे वरन अपने साथ आये अधिकारियों को वापस भेज कर बहुत समय उनके कुष्ठ रोगियों के साथ गुजारा करते थे। इसी तरह आदिवासियों और हरिजनों के प्रति उनकी संवेदना सहानुभूति और स्नेह देखकर उस समय भी उनके प्रति लोगों के मन में काफी सम्मान जगाता था।इस दौरान आदिवासियों की जमीनों की खरीदी बिक्री को लेकर धारा 170 ख के अनुपालन पर उन्होंने जिस तरह जोर दिया था उससे पूरे संभाग में हड़कंप मच गया था। और आदिवासियों की वर्षों पहले गैर आदिवासियों द्वारा खरीदी कई-कई जमीने फिर से आदिवासियों को वापस हुई थी। अपनी तरह के अकेले और ईमानदार कमिश्नर माने जाने वाले हर्षमंदर ने बाद में शासकीय सेवा से इस्तीफा दे दिया था। उनकी बिलासपुर में तैनाती के दौरान गोंडपारा में नदी किनारे स्थित सभी घरों और सफाई कामगारों की बस्ती को खाली कराने के लिए नगरीय निकाय की ओर से नोटिस जारी की गई थी। हर्ष मंदर ने तब इसे काफी गंभीरता से लेते हुए इन बस्तियों को न हटाए जाने का स्पष्ट निर्देश दिया था। इस दौरान पत्रकारों से चर्चा में उन्होंने यहां तक कहा कि अगर यह बस्तियां यहां से हटाई जाती हैं तो उनके यहां कमिश्नर रहने का कोई मतलब नहीं होगा। ऐसे संवेदनशील अधिकारी को जाहिर है सरकारी नौकरी रास नहीं आई होगी। इसलिए उन्होंने बाद के दिनों में गुजरात दंगों के दौरान मन में लगे आघात के कारण सरकारी सेवा से इस्तीफा दे दिया था।
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