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आपातकाल : देश के इतिहास का वो काला दिन… रातोंरात जेलखाने में बदल गया था देश… हाईकोर्ट का एक आदेश जिसने पलट दिया था रुख… जून 1975 से 21 मार्च 1977 की वो काली अवधि… जानिए क्या हुआ था…

आपातकाल : देश के इतिहास का वो काला दिन… रातोंरात जेलखाने में बदल गया था देश… हाईकोर्ट का एक आदेश जिसने पलट दिया था रुख… जून 1975 से 21 मार्च 1977 की वो काली अवधि… जानिए क्या हुआ था…

बिलासपुर, जून, 25/2024

25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक का 21 महीने की अवधि में भारत में आपातकाल घोषित था तत्कालीन  राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन ( indian prime minister) भारतीय प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के कहने पर भारतीय संविधान की अनुच्छेद 352 के अधीन आपातकाल की घोषणा कर दी। स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे विवादास्पद और अलोकतांत्रिक काल था। आपातकाल में चुनाव स्थगित हो गए तथा नागरिक अधिकारों को समाप्त करके मनमानी की गई। इंदिरा गांधी के राजनीतिक विरोधियों को कैद कर लिया गया और प्रेस पर प्रतिबंधित लगा दिया गया। प्रधानमंत्री के बेटे संजय गांधी के नेतृत्व में बड़े पैमाने पर पुरुष नसबंदी अभियान चलाया गया। जयप्रकाश नारायण ने इसे ‘भारतीय इतिहास की सर्वाधिक काली अवधि’ कहा था।

रातों रात पूरा देश बन गया था जेल…

आपातकाल की घोषणा के कुछ घंटे के भीतर की प्रमुख समाचार पत्रों के कार्यालयों में बिजली की आपूर्ति काट दी गई थी और जयप्रकाश नारायण, राज नारायण, मोरारजी देसाई, चरण सिंह, जार्ज फर्नांडिस सहित कई विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। इस दौरान भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 का उपयोग करते हुए इंदिरा गांधी ने खुद को असाधारण शक्तियां प्रदान कीं। आंतरिक सुरक्षा रखरखाव अधिनियम (एमआइएसए) को एक अध्यादेश के माध्यम से संशोधित कर दिया ताकि किसी भी व्यक्ति को बिना किसी मुकदमे के हिरासत में रखने की अनुमति दी जा सके। भारतीय संविधान का सबसे विवादास्पद 42वां संशोधन पारित किया गया। इसने न्यायपालिका की शक्ति को कम कर दिया। इस संशोधन ने संविधान की मूल संरचना को बदल दिया था।

इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला जिसने बदल दी दिशा….

आपातकाल की मूल वजह 12 जून, 1975 को आया इलाहाबाद हाई कोर्ट का वह फैसला था जिसमें इंदिरा गांधी के रायबरेली से सांसद के तौर पर चुनाव को अवैध करार दिया गया था। 1971 के आम चुनाव में रायबरेली निर्वाचन क्षेत्र के प्रतिद्वंद्वी राज नारायण ने उनके खिलाफ चुनाव में हेरफेर करने के लिए सरकारी मशीनरी के इस्तेमाल का आरोप लगाते हुए मामला दर्ज कराया था। दोषी पाए जाने पर उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया गया और अगले छह साल के उनके चुनाव लड़ने पर भी रोक लगा दी गई।

इमरजेंसी में आरएसएस की भूमिका…

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को प्रतिबन्धित कर दिया गया क्योंकि माना गया कि यह संगठन विपक्षी नेताओं का करीबी है तथा इसका बड़ा संगठनात्मक आधार सरकार के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन करने की सम्भावना रखता था। पुलिस इस संगठन पर टूट पड़ी और उसके हजारों कार्यकर्ताओं को कैद कर दिया गया। आरएसएस ने प्रतिबंध को चुनौती दी और हजारों स्वयंसेवकों ने प्रतिबंध के खिलाफ और मौलिक अधिकारों के हनन के खिलाफ सत्याग्रह में भाग लिया।

आरएसएस पर लगा था प्रतिबंध…

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और जमात-ए-इस्लामी सहित 26 संगठनों पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया। आपातकाल के मुखर आलोचक रहे फिल्मी कलाकारों को भी इसका दंश झेलना पड़ा। किशोर कुमार के गानों को रेडियो और दूरदर्शन पर बजाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। देव आनंद को भी अनौपचारिक प्रतिबंध का सामना करना पड़ा था।

सिखों ने किया विरोध…

सभी विपक्षी दलों के नेताओं और सरकार के अन्य स्पष्ट आलोचकों के गिरफ्तार किये जाने और सलाखों के पीछे भेज दिये जाने के बाद पूरा भारत सदमे की स्थिति में था। आपातकाल की घोषणा के कुछ ही समय बाद, सिख नेतृत्व ने अमृतसर में बैठकों का आयोजन किया जहां उन्होंने “कांग्रेस की फासीवादी प्रवृत्ति” का विरोध करने का संकल्प किया। देश में पहले जनविरोध का आयोजन अकाली दल ने किया था जिसे “लोकतंत्र की रक्षा का अभियान” के रूप में जाना जाता है। इसे ९ जुलाई को अमृतसर में शुरू किया गया था।

1 साल में 60 लाख से ज्यादा लोगो की नसबंदी…

आपातकाल के दौरान नसबंदी सबसे दमनकारी अभियान साबित हुआ था। नसबंदी का फैसला लागू कराने का जिम्मा संजय गांधी पर था। कम समय में अपने आप को साबित करने के लिए संजय गांधी ने इस फैसले को लेकर बेहद कड़ा रुख अपनाया। इस दौरान घरों में घुसकर, बसों से उतारकर और लोभ-लालच देकर लोगों की नसबंदी की गई। एक रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ एक साल के भीतर देशभर में 60 लाख से ज्यादा लोगों की नसबंदी कर दी गई थी।

शाह आयोग का गठन

1977 में सत्ता में आने के बाद जनता पार्टी ने आपातकाल की अवधि के दौरान सत्ता के दुरुपयोग, कदाचार और ज्यादतियों के विभिन्न पहलुओं की जांच के लिए भारत के सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जेसी शाह की अध्यक्षता में शाह आयोग का गठन किया था। आयोग द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया था कि आपातकाल के दौरान एक लाख से ज्यादा लोगों को निवारक हिरासत कानूनों के तहत गिरफ्तार किया गया था।