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राष्ट्र सिर्फ सरकार नहीं, समाज की चेतना से बनता है… बिलासपुर में ‘राष्ट्रचिंतन’ संगोष्ठी में उठी सामाजिक जागरूकता की आवाज… पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ बोले – 2 रुपये के चावल और साड़ी में मत बेचिए देश का भविष्य… समाज को चाहिए आत्मावलोकन और जागरूकता…

बिलासपुर, जुलाई, 20/2025

राष्ट्र सिर्फ सरकार नहीं, समाज की चेतना से बनता है… बिलासपुर में ‘राष्ट्रचिंतन’ संगोष्ठी में उठी सामाजिक जागरूकता की आवाज…

पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ बोले – 2 रुपये के चावल और साड़ी में मत बेचिए देश का भविष्य… समाज को चाहिए आत्मावलोकन और जागरूकता…

बिलासपुर। छत्तीसगढ़ सराफा एसोसिएशन द्वारा शनिवार को शहर के एक निजी होटल में ‘राष्ट्रचिंतन – विश्व गुरु भारत 2047: हमारा दायित्व’ विषय पर संगोष्ठी आयोजित की गई। कार्यक्रम का उद्देश्य राष्ट्र निर्माण में समाज की भूमिका और सामाजिक चेतना के महत्व को उजागर करना था। संगोष्ठी के मुख्य वक्ता प्रसिद्ध चिंतक और सामाजिक विचारक पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ रहे।

“राष्ट्र का निर्माण समाज की सहभागिता से होता है”

कुलश्रेष्ठ ने अपने उद्बोधन में कहा कि राष्ट्र सरकार से नहीं, समाज की चेतना और सहभागिता से चलता है। केवल सरकारी नियमों का पालन करना राष्ट्रसेवा नहीं है। जब तक समाज अपनी भूमिका नहीं समझेगा, तब तक सशक्त राष्ट्र की कल्पना अधूरी रहेगी। उन्होंने कहा कि आज का समाज छोटी-छोटी सुविधाओं के बदले अपने कर्तव्यों और आत्मसम्मान को भूलता जा रहा है। यह स्थिति आने वाले समय के लिए गंभीर चिंता का विषय है।

कर्तव्यबोध से ही बनती है पहचान

उन्होंने कहा कि किसी व्यक्ति की पहचान उसकी जाति, वर्ग या पद से नहीं, बल्कि उसके कर्तव्यबोध से होती है। मंगल पांडे जैसे वीर सेनानियों का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि जब कोई राष्ट्र के प्रति समर्पित होता है, तब वह किसी भी सामाजिक बंधन से ऊपर उठकर कार्य करता है। यही सामाजिक चेतना का सार है — जब व्यक्ति अपने निजी हितों से ऊपर उठकर समाज और राष्ट्र के हित में सोचता है।

“भारतीय संस्कृति में परिवार और समाज अटूट हैं”

कुलश्रेष्ठ ने भारतीय विवाह व्यवस्था और पारिवारिक मूल्यों पर भी विचार रखते हुए कहा कि हमारी संस्कृति में विवाह केवल एक सामाजिक बंधन नहीं, बल्कि जन्म-जन्मांतर का संकल्प है। उन्होंने तलाक की बढ़ती प्रवृत्ति पर चिंता जताते हुए कहा कि यह सामाजिक विघटन का प्रतीक है, और इससे समाज की बुनियाद कमजोर होती है।

धर्म और मजहब के फर्क को समझें

उन्होंने कहा कि आज के समय में सामाजिक चेतना की सबसे बड़ी जरूरत है — सही और गलत को पहचानना। धर्म आत्मिक उत्थान और नैतिक आचरण का मार्ग है, जबकि मजहब सीमित विचारों और टकराव की स्थिति पैदा कर सकता है। समाज को चाहिए कि वह इस अंतर को समझे और सद्भाव बनाए रखे।

“शंकराचार्य परंपरा सामाजिक स्थिरता का स्तंभ”

कुलश्रेष्ठ ने शंकराचार्य परंपरा को भारतीय समाज की वैचारिक रीढ़ बताया। उन्होंने कहा कि समाज में जब भी सांस्कृतिक या नैतिक भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है, तब शंकराचार्य जैसे आध्यात्मिक मार्गदर्शक उसका समाधान देते हैं। यह सामाजिक स्थिरता के लिए आवश्यक है।

संगोष्ठी में जुटे सामाजिक प्रतिनिधि

कार्यक्रम में समाज के विभिन्न वर्गों से प्रतिनिधियों की सहभागिता रही। विशेष रूप से बिलासपुर विधायक अमर अग्रवाल, बिल्हा विधायक धरमलाल कौशिक, बेलतरा विधायक सुशांत शुक्ला, क्रेडा अध्यक्ष भूपेंद्र सवंत्रि, सराफा एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष कमल सोनी सहित जय सराफ, राजेश साह, श्रीकांत पांडेय, राजेश सोनी, जितेंद्र सोनी, नवनाथ आवले, सूरज सोनी, सजन सोनी, प्रकाश सोनी, छेदीलाल सराफ, भीम सराफ, महेंद्र शाह, किशन सोनी आदि गणमान्य लोग उपस्थित रहे।

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Lokesh war waghmare - Founder/ Editor

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