घुमंतू जनजातियों को विकास की मुख्यधारा में शामिल करने की जरूरत : प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल…
वर्धा, सितंबर, 07/2022
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने मंगलवार को कहा है कि विमुक्त एवं घुमंतू जनजातियां वास्तविक स्वातंत्र्य योद्धा थे। योद्धा या लड़ाकू प्रवृत्ति के कारण कभी अंग्रेजी राज में अपराधी घोषित हुए तो कभी अपनी ही सरकार द्वारा ‘हेबिचुअल ऑफेंडर’ यानी आदतन अपराधी करार दिया गया। इनके ऊपर जन्मजात अपराधी होने का कलंक लगाना अमानवीय है। विमुक्त एवं घुमंतू जनजातियों को विकास की मुख्यधारा में शामिल करने के लिए प्रयास करने की जरूरत है।
कुलपति प्रो. शुक्ल महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के सामाजिक नीति अनुसंधान प्रकोष्ठ के तत्वावधान में ‘विमुक्त एवं घुमंतू जनजाति कल्याण की नीतियां, चुनौतियां एवं संभावनाएं’ विषय पर आयोजित राष्ट्रीय परिसंवाद में अध्यक्षीय वक्तव्य दे रहे थे। उन्होंने कहा कि सेवा क्षेत्र का बड़ा हिस्सा इस समुदाय के पास था, उत्पादन का बड़ा हिस्सा, लोक कलाएं और संचार इन्हीं के पास था। आज आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में समाज के बहिष्कृत समझे जाने वाले घुमंतू समाज अभी भी स्वतंत्रता के अमृत से वंचित हैं।
विमुक्त एवं घुमंतू जनजाति दिवस के अवसर पर आयोजित राष्ट्रीय परिसंवाद में भारत सरकार के पूर्व सचिव एच. के. दाश ने कहा कि भारत में विमुक्त एवं घुमंतू जनजाति लोगों की संख्या लगभग दस से बारह करोड़ है। विमुक्त एवं घुमंतू जनजातियों का स्थायी घर नहीं है अतएव स्थायी पते के अभाव में सरकार द्वारा चलाये जा रहे कल्याणकारी योजनाओं से वे वंचित रह जाते हैं। उन्होंने कहा कि विमुक्त एवं घुमंतू समुदायों के पास बहुत ही समृद्ध सांस्कृतिक विरासत है इसके संरक्षण एवं संवर्धन तथा इन समुदायों द्वारा उत्पादित कलाकृतियों एवं घरेलू उपयोगी उत्पाद की बिक्री के लिए कारगर उपाय किया जाना चाहिए और साथ ही राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय मेले में उनके द्वारा बनाई गई कलाकृतियों का प्रदर्शन भी किया जाना चाहिए।
अखिल भारतीय विमुक्त एवं घुमंतू जनजाति कार्य प्रमुख दुर्गादास ने विमुक्त एवं घुमंतू जातियों को धर्म योद्धा और आर्थिक योद्धा के रूप में उल्लेखित करते हुए कहा कि अंग्रेजों ने 1871 में क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट लागू करके, इन्हें अपराधी घोषित कर दंडित किया, जिससे इनका सामाजिक अस्तित्व खतरे में आ गया। फिर बाद में वन कानून, चिकित्सा कानून, पशु क्रूरता कानून से इन्हें रोजगारविहीन कर दिया गया। शासन के उपेक्षापूर्ण रवैये के चलते, पुलिस तथा प्रशासन पूर्वाग्रह ग्रस्त होकर इन्हें प्रताडि़त करते हैं। शासक, प्रशासक, पुलिस और समाज के लोग मिल करके आजादी के 75 वर्षों से उपेक्षित विमुक्त एवं घुमंतू जनजातियों के लिए कार्य करें ताकि कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उन तक पहुंच सके।
मुंबई विश्वविद्यालय की सहायक प्रोफेसर डॉ. सुवर्णा रावल ने कहा कि घुमंतू समाज घूम-घूम कर धर्म जागरण करते रहे हैं। इनका कहना है कि हम धर्म के काम को कैसे छोड़ सकते हैं। सामाजिक तौर पर मानसिक प्रताड़ना को रोकने के लिए सामाजिक आंदोलन की जरूरत है। उन्होंने घुमंतू समाज के विकास के लिए इदाते आयोग की सिफारिशों को जमीनी स्तर पर उतारने की बात पर बल दिया।
सामाजिक नीति अनुसंधान प्रकोष्ठ के संयोजक डॉ. के. बालराजु ने बीज वक्तव्य में विमुक्त एवं घुमंतू जनजातियों के विकास के लिए बने अनंतशयनम् आयंगर समिति, काका कालेलकर आयोग, राष्ट्रीय आयोग, रेन्के आयोग और इदाते आयोग से लेकर डॉ. अंबेडकर प्री-मैट्रिक और पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति एवं स्कीम्स फॉर इकोनॉमिक इम्पॉवरमेंट फॉर डीनोटिफाइड ट्राइब्स (SEED) योजना के संदर्भ में विस्तार से चर्चा की। वर्धा समाज कार्य संस्थान के निदेशक प्रो. मनोज कुमार ने स्वागत वक्तव्य में कहा कि सामाजिक नीति अनुसंधान प्रकोष्ठ द्वारा उन अनछुए पहलुओं पर संवेदनशील होकर चर्चा कर रहा है जो कि 75 वर्षों में विकास से कोसों दूर रहे। शिक्षा विभाग की सहायक प्रोफेसर डॉ. शिल्पी कुमारी ने संचालन तथा वर्धा समाज कार्य संस्थान के सहायक प्रोफेसर डॉ. मिथिलेश कुमार ने आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का प्रारंभ कुलगीत से किया गया।परिसंवाद कार्यक्रम में प्रतिकुलपति द्वय प्रो. हनुमानप्रसाद शुक्ल, प्रो. चंद्रकांत एस. रागीट, प्रो. कृष्ण कुमार सिंह, प्रो. गोपालकृष्ण ठाकुर सहित बड़ी संख्या में अध्यापक, कर्मी, शोधार्थी एवं विद्यार्थी उपस्थित थे।
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