शशि कोंन्हेर
बिलासपुर // एक बार फिर बिलासपुर में किसान हार गया। बृहस्पतिबाजार में सड़क किनारे से भी सब्जियों सहित खदेड़ दिया गया उसे। कह दिया कि बृहस्पतिबाजार कोचियों का था.. है ..और रहेगा।। और किसान…सब्जी उत्पादक किसान..!उंन्हे मंडी जाकर अपनी सब्जियां औने-पौने दामो पर ही बेचनी पड़ेगी। उसे बृहस्पति या शनिचरी में जमीन पर बोरी फट्टी भी बिछाकर सब्जी बेचने का कोई हक नहीं है। उसे केवल सब्जी उगाना है। पानी बारिश, घाम में भुगतकर हड्डियां गलाकर सिर्फ सब्जी उगाने का काम करना है।अब उसकी उगाई सब्जीयां कितने में बिकेंगी, कैसे बिकेंगी ? ये सब सोचना या करना उसका काम नहीं है । बिलासपुर के साहबों ने, नेताओ ने ये काम और इस काम से दाम बनाने का जिम्मा कोचियों को..चबूतरों पर बैठे व्यापारियों को दे दिया है। सावधान !किसान अब अगर इसमे खलल डालेगा..व्यवधान “उत्पन्न करेगा…तो उसका सामान ,उसकी सब्जियां फेक दी जाएंगी। उसे उसकी औकात बता दी जाएगी। जैसा कल सोमवार को बृहस्पति बाजार में किया गया। किसानो की सब्जियां फेंक दी गई। किसानों को धक्के मारकर भगा दिया गया। इससे दुखी धरती पुत्र बेचारे टाउनहाल गए। साहबो के पास गए।लेकिन किसी ने उनकी नहीं सुनीं। सबने कोचियों का साथ दिया। बिचौलियों का साथ दिया। नतीजा यह हुआ कि आज मंगलवार की सुबह से बृहस्पतिबाजार से किसान गायब थे। और चबूतरों पर बैठे सब्जी व्यापारी, सगर्व सीना चौड़ा कर सब्जियां बेचने में लगे थे। अब उंन्हे महंगी कीमतों में सब्जीयां बेचने से रोकने वाला कोई नही रहा। अब फिर वे तिफरा से 5 रुपये किलो के दाम पर खरीदी गई सब्जियों को 15 रुपये किलो में बेचें या 16 रुपये में! अब उंन्हे बोलने वाला कोई नही रह गया। इसमें अड़ंगा बन रहे किसानों को उन्होंने बृहस्पति बाजार से खदेड़ जो दिया है।
अब जिले के किसानों को कौन समझाए की भाई अब बिलासपुर तुम्हारा नहीं रहा। यहां 20-25 साल पहले तक तुम्हारी सुनने वाले लोग अब नहीं रहे…और जो हैं भी..तो वो बेचारे खुद, नक्कारखाने की तूती बने हुए हैं। अब यहां ऑफिसो में, पार्टियो में, पार्टियों के जिला व शहर अध्यक्ष सहित तमाम पदों पर कोई किसान नही रह गया है। सब पर शहर वालों का या बाहर से आकर इस शहर की छाती पर मूंग दरने वालों का कब्जा हो गया है।जिले के किसान धूप में, ठंड में पानी- बादर में ,हाड़तोड़ मेहनत और खेती करते रह गए। इससे धान व सब्जियां भले ही उनकी हो गईं. पर धान और सब्जी की मंडियां उनकी नही रह गईं। उन पर ऐसी ताकतों ने डेरा जमा लिया जिनकी ऊंची ऊंची अट्टालिकाओं की बुनियाद में पड़ी किसानों के अरमानों की लाशें, कराह रहीं हैं। पर अब देश के और शहरों की तरह बिलासपुर में भी उनकी दर्द भरी आवाज, न तो कोई सुनने वाला है और न समझने वाला।
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