(शशि कोन्हेर)
बिलासपुर // वास्तव में बिलासपुर से रतनपुर पाली और कटघोरा होते कोरबा जाने वाली सड़क की हालत खेतों से भी गई गुजरी हो गई है। इस सड़क पर मोटर गाड़ियों से आना जाना तो दूर पैदल चलना भी कष्ट कर हो गया है। बिलासपुर से केवल 11 किलोमीटर अर्थात सेंदरी तक के हिस्से को छोड़ दिया जाए तो इस सड़क को सड़क कहना भी बेकार है। गतौरी से रतनपुर और रतनपुर से पाली, फिर वहां से कटघोरा होते हुए कोरबा जाने वालों को ही इस तकलीफ का असल एहसास है। समय-समय पर मरम्मत की आड़ में ट्रेनों का बारंबार रद्द होना और उस पर इस सबसे व्यस्ततम सड़क का लंबे समय से जर्जरतम होना बिलासपुर और कोरबा वालों को बार-बार यह एहसास करा रहा है कि इस क्षेत्र का कोई माई बाप नहीं है। यहां बड़े बड़े नेता हैं अधिकारी हैं मगर अफसोस कि काम करने वाला कोई नहीं है। अगर ऐसा ना होता तो इस सड़क का यह हाल भी नहीं होता।
तीन-चार साल से इस सड़क के जर्जर होने से न केवल कोरबा वासी वरन बिलासपुर समेत ऐसे सभी क्षेत्र के लोगों को काफी तकलीफ हो रही है, जिनका आना जाना, कोरबा से लगा ही रहता है। ऐसा लगता है सरकार और उसके नुमाइंदों ने कोरबा को एक ऐसा टापू बना दिया गया है। जहां न कोई जा सके और जहां से न कोई आ सके।
हमारे हुक्मरानों को शर्म भी नहीं आती। पहले वाले भी बड़ी-बड़ी बातें किया करते थे लेकिन छोटी-छोटी समस्याओं तक को हल उन्हें जी पर आता था। अब नए निजाम को भी 18 महीने तो हो ही रहे हैं। क्षेत्र के लोगों का और बिलासपुर से कोरबा जाने वाली सड़क का नसीब जस का तस बदनसीब ही बना हुआ है।कोरबा से कटघोरा वहीं कटघोरा से पाली और पाली से रतनपुर व रतनपुर से बिलासपुर के पास स्थित गतौरी तक सड़क की हालत इतनी खराब हो गई है कि उसे जर्जर कहना भी जर्जर शब्द का अपमान करने तरीका हो गया है। ऐसा लगता है कि छत्तीसगढ़ बनने के 20 साल बाद भी अलग राज्य का कोई सुख ना तो इस क्षेत्र के लोगों को मिल रहा है और ना ही यहां की सड़कों को। इस हालत के लिए जो भी जिम्मेदार लोग हैं, उन्हें शर्म आनी चाहिए की बिलासपुर, कोरबा,कटघोरा रतनपुर और पाली के लोग इस सड़क के कारण कितना नारकीय कष्ट झेल रहे हैं। कोरबा के वरिष्ठ पत्रकार साथी नौशाद खान भाई को बहुत-बहुत साधुवाद है कि उन्होने इस समस्या को समाचार पत्र के जरिए उठाया है। बिलासपुर के भी सभी अखबारों में,इस पर इतना ज्यादा और बार-बार लिखा जा रहा है कि अगर कोई पानीदार अधिकारी नेता या मंत्री होता तो कमर कस के इस जर्जर व तबाह हो चुकी सड़क को ठीक करने के लिए प्राण-पण से भिड़ जाता। पूर्व मंत्री और विधायक ननकीराम कंवर जरूर समय-समय पर हो हल्ला करते रहते हैं। लेकिन उनकी आवाज को भी नक्कारखाने की तूती बना दिया जाता है। दरअसल इस सड़क की खस्ता-हाली के खिलाफ जिस तरह की, एकजुट आवाज उठनी चाहिए, उसका पूरी तरह अभाव है। कायदे से इस जर्जर इस सड़क के बनते तक कोरबा से कोयले की निकासी बंद कर दी जानी चाहिए । तभी रायपुर से दिल्ली तक बैठे शर्मसार नेताओं को कुछ शर्म आ सकती है। वरना इस सड़क की खस्ताहाली बदहाली और फूटी किस्मत और आम जनता के फूटे नसीब का, ऊपरवाला ही मालिक है।
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