भारत का आखरी रेल्वे स्टेशन क्यों है वीरान… कभी राष्ट्रपिता गांधी और सुभाषचंद्र बोस जैसी शख्यित करते थे यहां से यात्रा…
बिलासपुर, जुलाई, 22/2022
भारत और बांग्लादेश सीमा के बीच एक ऐसा रेल्वे स्टेशन है जो कभी दोनों देशों के बीच संपर्क स्थापना का केंद्र हुआ करता था इस स्टेशन का नाम सिंहाबाद। दोनों देशों की सीमा पर बना यह रेल्वे स्टेशन भारत का आखरी स्टेशन है। विडंबना ये है कि आज यह पूरी तरह से वीरान पड़ा हुआ है। यहां सारा निर्माण अंग्रेजो के समय का किया गया है। इस रूट पर कभी देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और सुभाषचंद्र बोस जैसे महान शख़्सियत इस मार्ग से सफर किया करते थे।
आपको बता दें कि भारत में लगभग 7083 रेलवे स्टेशन हैं। इनमें से कुछ स्टेशन ऐसे हैं, जिनकी अपनी अलग कहानी है। आपने अब तक भारत के सबसे बड़े और सबसे छोटे रेलवे स्टेशन के बारे में पढ़ा और सुना होगा, लेकिन आज हम आपको भारत के आखिरी स्टेशन के बारे में बता रहे है। इस स्टेशन का नाम है सिंहाबाद। ये कोई बड़ा स्टेशन नहीं है , लेकिन बहुत पुराना जरूर है। यह स्टेशन अंग्रेजों के समय का है। यहां आज भी सब कुछ वैसा ही है, जैसा अंग्रेज छोड़कर गए थे। यहां अब तक कुछ भी नहीं बदला है। बांग्लादेश की सीमा से सटा यह भारत का आखिरी रेलवे स्टेशन है, जिसका इस्तेमाल मालगाडियों के ट्रांजिट के लिए किया जाता है। ये स्टेशन पश्चिम बंगाल के मालदा जिले के हबीबपुर इलाके में है।
भारत के आखिरी रेलवे स्टेशन से जुड़ी खास बातें…
आपने कई बार ट्रेन से यात्रा की होगी, इस बीच तमाम स्टेशनों से आपकी ट्रेन भी गुजरी होगी, लेकिन क्या आपके मन में ये सवाल आया है कि देश का आखिरी स्टेशन कौन सा है? भारत का आखिरी स्टेशन है सिंहाबाद जो बांग्लादेश की सीमा से सटा है। बताया जाता है कि ये अंग्रेजों के जमाने का स्टेशन है और आज भी वैसा ही बना है, जैसा अंग्रेज इसे छोड़ कर गए थे। लेकिन देश आजाद होने के बाद से ये स्टेशन एकदम वीरान पड़ा रहता है. यहां कोई भी यात्री ट्रेन नहीं रुकती, इस कारण यहां यात्रियों की चहलकदमी भी नही रहती ।
सिंहाबाद से जुड़ी खास बातें…
गांधी और बोस भी इस रूट में सफर करते थे,
बताया जाता है कि सिंहाबाद रेलवे स्टेशन पश्चिम बंगाल के मालदा जिले के हबीबपुर इलाके में है। किसी जमाने में सिंहाबाद रेलवे स्टेशन कोलकाता से ढाका के बीच संपर्क स्थापित करता था। उस समय इस रूट का इस्तेमाल किया जाता था. महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोस भी इस ढाका जाने के लिए इस रूट से कई बार गुजरे हैं। एक जमाना था जब दार्जिलिंग मेल जैसी ट्रेन यहां से गुजरा करती थीं, लेकिन आज के समय में यहां कोई यात्री ट्रेन नहीं रुकती।
बांग्लादेश बनने के बाद हुआ था समझौता…
कहा जाता है कि 1971 के बाद जब बांग्लादेश बना, तब भारत और बांग्लादेश के बीच यात्रा की मांग उठने लगी. इसके बाद एक समझौता हुआ जिसके बाद इस रूट पर भारत से बांग्लादेश आने और जाने के लिए मालगाड़ियां फिर से चलने लगीं. साल 2011 में समझौते में संशोधन करके इसमें नेपाल को भी शामिल कर लिया गया. आज बांग्लादेश के अलावा नेपाल जाने वाली मालगाड़ियां भी इस स्टेशन से होकर गुजरती हैं। रोहनपुर के रास्ते बांग्लादेश जाने वाली और भारत से नेपाल की ओर जाने वाली मालगाड़ियां यहां कई बार रुककर सिग्नल के लिए इंतजार करती हैं।
रेलवे बोर्ड लिखा है ‘भारत का अंतिम स्टेशन’…
यहां के रेलवे बोर्ड पर लिखा है ‘भारत का अंतिम स्टेशन’. यहां पर सिग्रल, संचार और स्टेशन से जुड़े सारे उपकरण, टेलीफोन और टिकट आज भी अंग्रेजों के समय के ही हैं. सिग्नल के लिए हाथ के गियरों का इस्तेमाल किया जाता है. यात्री ट्रेन न रुकने की वजह से यहां टिकट काउंटर हमेशा बंद रहता है. स्टेशन पर कर्मचारी गिने चुने ही हैं. स्टेशन के नाम पर सिर्फ छोटा सा स्टेशन ऑफिस नजर आता है।(साभार tv9 हिंदी)
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