- गोबर-गोमूत्र ख़रीदी : कही चारा घोटाला जैसा हश्र ना हो जाए इस पब्लिसिटी योजना का !! लाखों स्कूली छात्र चरवाहा बनने की राह पर…
बिहार के चारा घोटाला से तो सभी वाक़िफ़ हैं । गाय के नाम पर लालू यादव ने करोड़ों रुपए खाए । इसमें CBI जाँच भी हुई और लालू को सजा भी । छत्तीसगढ़ की गोधन न्याय योजना भी उसी राह पर हैं । राज्य में 3.5 साल में 8,000 गोठान बन चुके हैं । हर एक गोठान में 50 लाख से 1 करोड़ तक का खर्च किया जा चुका है । बावजूद इसके सभी मवेशी सड़क में ही पाये जाते हैं। छत्तीसगढ़ के किसी भी सड़क में चले जाए आप गाय ज़रूर मिलेगा।अधिकतर गोठान बंद पड़े हैं । जबकि सरकार का गोठान बनाने के पीछे तो यही तर्क था की सभी आवारा मवेशी गोठान में ही रहेंगे और रोड में इनसे कोई ऐक्सिडेंट नहीं होगा । असल हालत तो हर दिन अख़बारों में आ रहा हैं । हाल ही में केंद्रीय मंत्री गिरीराज़ सिंह के कोरबा दौरे के दौरान भी उन्होंने पंचायत के अधिकारियों को चिल्लाया था कि सारे गाय तो रोड पर हैं मतलब पैसों की बर्बादी हैं ये योजना । बाक़ायदा उन्होंने रोड पर मवेशी के वीडीओं को फ़ेसबुक पर भी साझा भी किया था ।
गाँव में भी लोगों को खेती के समय आवारा मवेशी से समस्याएँ आ रही हैं । गाँव के करोड़ों फंड को गोठान के नाम पर फूँकने के बाद भी उनकी मवेशी समस्या जस की तस हैं । फंड के कमी के कारण पंचायत में कोई दूसरा काम हुआ नहीं ।
अब जब गोठान का मूल उद्देश्य पूरा हुआ ही नहीं तो इसका मतलब तो यही हैं कि जो हज़ारों करोड़ इन्वेस्ट हुआ हैं वो वेस्टफूल ऐक्सपेंडिचर हैं। इसी तरह सरकार जो दावे करती हैं कि 300 करोड़ की गोबर ख़रीदी हो चुकी हैं उसमें भी बहुत सवाल उठते हैं। आख़िर गोबर से क्या 300 करोड़ का वर्मीकाम्पोस्ट बना और बेचा ?? जवाब हैं ना । बहुत से गोबर जो ख़रीदी हुई कुछ गोठानों में वो बारिश में भी बह के बर्बाद हुआ । समूह जो वर्मीकाम्पोस्ट बना रहे हैं वो गुणवत्ताहीन हैं। इसको प्राइवेट सेक्टर और किसान ख़रीद नहीं रहे हैं ।खाद की कमी अखबारो और विधानसभा सत्र में भी छाया रहा । हर एक गोठान में गोठान समिति भी बनायी गयी हैं जिसको हर महीने पैसे दिए जाते हैं। जब गोठान चल ही नहीं रहा और मवेशी रुक ही नहीं रहे तो फिर ये फ़ालतू के पैसे इन गोठान समितियों को क्यू दिए जा रहे हैं ?? ये सब से साफ़ पता चलता हैं गोठान में फ़ालतू का व्यय हो रहा हैं ।
28 जुलाई से सरकार गोमूत्र भी ख़रीदने जा रही हैं 4 रुपए प्रति लीटर के हिसाब से । इसमें भी बहुत सवाल उठते हैं । अगर कोई पानी मिला के लाएगा तो कैसे पकड़ेंगे ?? अगर कोई दूसरे जानवर का मूत्र लाएगा तो कैसे पकड़ेंगे ??
अगर कोई अपना मूत्र लाएगा तो कैसे पता लगायेगें कि वो गाय का मूत्र नहीं है ?? सभी गाय का क्या मूत्र एक जैसे होते है ?? क्या इसके लिए हर गोठान में कोई स्पेशल लैब बनेगा ?? गोमूत्र है या किसी और का मूत्र यह पता लगाना असम्भव है ।जब यही पता नहीं चलेगा तो फिर इसपे पैसे बर्बाद करने का क्या मतलब ?? अगर सही ख़रीद भी लिए तो इसका करेंगे क्या ?? जब गोबर से बना खाद लोग नहीं ख़रीद रहे तो फिर इससे बने ज़ैविक खाद को कैसे ले लेंगे ?? ये तो जनता के पैसों की बर्बादी हैं ।
लाखों स्कूली छात्र चरवाहा बनने के कगार में हैं । हाल ही में भारत सरकार के तरफ़ से नेशनल अचीव्मेंट सर्वे के आँकड़े जारी हुए हैं जो राज्यों के स्कूल शिक्षा के स्तर का सही आकलन करता हैं । तीसरी,पाँचवीं, आठवीं और दसवी कक्षा के छात्रों का हर विषय में ज्ञान का आकलन होता है । छत्तीसगढ़ तीन वर्ष पूर्व देश में 18 नम्बर में था । इस वर्ष 34 नम्बर में पहुँच गया हैं । लगभग हर विषय में छत्तीसगढ़ अंतिम तीन राज्यों के लिस्ट में है । अगर स्कूली शिक्षा ही ख़राब रही तो बच्चे कॉलेज तो पढ़ ही नहीं पाएँगे । पहले ही स्कूल छोड़ देंगे। वर्तमान में गाँव में बस गोठान ही रोज़गार का साधन हैं । ऐसे में तो वे चरवाहा ही बन पाएगें । बेहतर होगा कि जो पैसे गोठान और गोबर में खर्च हो रहा हैं उसको शिक्षा में इस्तेमाल करें । बच्चे कम से कम अच्छी नौकरी तो पा सकेंगे भविष्य में ।
*जे.पी.अग्रवाल की रिपोर्ट*
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