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विश्व नदी दिवस पर संवाद : “50% नदियां प्रदूषित, अब भी नहीं जागे तो संस्कृति और स्वास्थ्य दोनों खतरे में” छोटी नदियां बचेंगी तो ही बड़ी नदियां जिंदा रहेंगी : प्रो. भारती

बिलासपुर, सितंबर, 28/2025

विश्व नदी दिवस पर संवाद : “50% नदियां प्रदूषित, अब भी नहीं जागे तो संस्कृति और स्वास्थ्य दोनों खतरे में”

छोटी नदियां बचेंगी तो ही बड़ी नदियां जिंदा रहेंगी : प्रो. भारती

बिलासपुर। विश्व नदी दिवस के अवसर पर बिलासा कला मंच और बिलासपुर प्रेस क्लब के संयुक्त तत्वावधान में बिलासपुर प्रेस ट्रस्ट भवन में विश्व नदी दिवस पर एक विशेष संवाद का आयोजन किया गया। विषय था – “भारतीय ज्ञान परंपरा में नदी संरक्षण, वर्तमान स्थिति तथा भविष्य की चुनौतियां”।

प्रमुख वक्ता के रूप में देश के माने हुए नदी विशेषज्ञ प्रोफेसर ओम प्रकाश भारती थे , संवाद की अध्यक्षता बिलासा कला मंच की संस्थापक डा सोमनाथ यादव ने की। बिलासपुर प्रेस क्लब के अध्यक्ष दिलीप यादव, सचिव संदीप करिहार, कोषाध्यक्ष लोकेश वाघमारे, रमेश राजपूत सहसचिव, कार्यकारिणी सदस्य कैलाश यादव, पूर्व अध्यक्ष इरशाद अली, मंच के संरक्षक चंद्रप्रकाश देवरस अतिथि के रूप में उपस्थित थे।

नदी केवल जल नहीं, आस्था और अर्थव्यवस्था का आधार…

प्रो. भारती ने कहा कि भारतीय संस्कृति में नदियां केवल पानी का स्रोत नहीं बल्कि धार्मिक आस्था, सामाजिक जीवन और आर्थिक स्थिरता की धुरी हैं। गंगा से लेकर शिवनाथ और महानदी तक, नदियां हमारी सांस्कृतिक पहचान हैं। उन्होंने याद दिलाया कि 2014 में संस्कृति मंत्रालय की ओर से उन्होंने स्वयं “गंगा संस्कृत यात्रा” की थी, जिसमें गंगोत्री से गंगासागर तक करोड़ों लोग जुड़े।

छोटी नदियों पर संकट, बड़ी नदियों का अस्तित्व खतरे में…

प्रो. भारती ने जोर देकर कहा कि अगर छोटी नदियां खत्म हो गईं तो बड़ी नदियों का अस्तित्व भी नहीं रहेगा। आज स्थिति यह है कि देश की करीब 50% नदियां प्रदूषित हो चुकी हैं।

छत्तीसगढ़ में कोयला खदानों और खतरनाक उद्योगों का अपशिष्ट बिना उपचार के नदियों में छोड़ा जा रहा है।

अकेले शिवनाथ नदी में ही 122 नालों का गंदा पानी डाला जा रहा है।

रासायनिक तत्व भूजल में पहुंचकर अब 150 फीट गहराई तक प्रदूषण फैला रहे हैं, जिससे कैंसर जैसी बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं।

नदियों को नाला घोषित करना गलत परंपरा….

उन्होंने चिंता जताई कि कई नदियों को अब सरकारी दस्तावेजों में “नाला” लिख दिया गया है, जिससे उनकी पहचान और महत्व घटता जा रहा है। “नदी झूठ नहीं बोलती, उसकी अपनी स्मृति और धारा होती है, लेकिन प्रशासनिक भाषा ने उसकी गरिमा को मिटा दिया है।”

सरकार और समाज दोनों की जवाबदेही…

प्रो. भारती ने कहा – सरकार को चाहिए कि कठोर कानून बनाकर उद्योगों और खदानों को प्रदूषण रोकने के लिए बाध्य करे।

ग्राम पंचायत स्तर पर नदी संरक्षण समिति बनाई जाए।

नदियों के इतिहास, कथाएं और महत्व को बच्चों के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए।

छोटी नदियों को गूगल मैप और राजस्व अभिलेखों में सही नाम से दर्ज किया जाए।

भविष्य की चेतावनी…

विशेषज्ञों के अनुसार यदि यही स्थिति रही तो अगले दस वर्षों में देश की GDP में 6% तक की गिरावट केवल जल संकट और प्रदूषण के कारण हो सकती है। साथ ही मगरमच्छ, घड़ियाल जैसे जलीय जीव विलुप्त हो जाएंगे और छत्तीसगढ़ सहित पूरे भारत की सांस्कृतिक पहचान समाप्त हो जाएगी।

निष्कर्ष…

संवाद का सार यही निकला कि नदियों का संरक्षण केवल सरकार का काम नहीं, बल्कि जनता की भी जिम्मेदारी है। जब तक समाज और शासन दोनों साथ मिलकर ठोस कदम नहीं उठाएंगे, तब तक नदियों को बचाना संभव नहीं होगा।

 

 

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Lokesh war waghmare - Founder/ Editor

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