गोमूत्र ख़रीदी – बस इसी की कमी रह गयी थी… नवाचार सूचकांक में देश में आख़री स्थान पर छःग…
बिलासपुर, जुलाई, 24/2022
80 लाख बेघर लोगों के पक्का आवास का पैसा गोबर और गोठान में लगाने के अब छत्तीसगढ़ सरकार गोमूत्र ख़रीदी करने जा रही है ।पूरा प्रशासन गोबर मय हो गया है ।जिसको देखो ख़ाली गोबर ख़रीदने और गोठान बनाने में लगा हुआ है ।हाल ही में भारत सरकार द्वारा जारी नवाचार सूचकांक में छत्तीसगढ़ आख़री स्थान पर है । अगर गोबर और गोमूत्र ख़रीदी इतना नवाचार और फ़ायदेमंद होता जैसा की यहाँ के नेता और अधिकारी प्रचार करते है, तो हम नवाचार के मामले में देश में आख़िरी स्थान पर क्यों है ?? गोबर – गोबर करते राज्य की क़ानून व्यवस्था, शिक्षा,सड़क, आवास और रोज़गार की स्थिति गोबर जैसी हो गयी है । बलात्कार और मार काट तो चरम सीमा पर है, रोज़ अख़बार में देख सकते है । बलात्कार में हम पाँचवें नम्बर पर पहुँच गए है ।शिक्षा में हम नैशनल अचीव्मेंट सर्वे के मुताबिक़ 18 से 34वें नम्बर पर पहुँच गए है ।सड़क की हालत तो ऐसी है की समझ नहीं आता की सड़क में गड्ढे है या गड्ढे में सड़क । विधानसभा में भी इसपे ज़ोरदार हल्ला हुआ । रोज़गार की स्थिति इसी से पता चल जाता है की चपरासी के 91 पद में लिए 2 लाख आवेदन आते है ।और आवास की हालत तो टी एस बाबा बयाँ कर दिए । छत्तीसगढ़ जैसे गरीब राज्य में आज भी अधिक्तर लोग बिना घर के या कच्चे मकान में रहते है ।
छत्तीसगढ़ को 2019 में प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत 8 लाख पक्के मकान स्वीकृत हुए थे । इस योजना के तहत केंद्र सरकार मकान का 60% और राज्य सरकार को 40% खर्च उठाना था । केंद्र सरकार ने पैसे भी अलॉट कर दिए थे । पर राज्य सरकार ने पैसे देने से हाथ खड़े कर दिए और ना ही पुराने स्वीकृत मकान में कोई रुचि दिखाई । इससे केंद्र सरकार ने सभी 8 लाख मकानो के स्वीकृति को निरस्त कर दिया और अपने पैसे वापस खींच लिए। पूरे देश में छत्तीसगढ़ ही अकेला ऐसा राज्य था जहा केंद्र सरकार को पक्का आवास निरस्त करना पड़ा । सरकार ने कारण बताया की हमारे पास पैसा नहीं है । अगर उस 8 लाख मकान का निर्माण हो जाता तो अब तक 8 लाख मकान और स्वीकृत हो जाए रहता । कुल 16 लाख बेघर परिवारों मतलब 80 लाख लोगों को पक्का आवास उपलब्ध हो जाए रहता । 80 लाख मतलब राज्य का लगभग 25% आबादी !!!
सभी जानते है कि सुने पड़े गोठान और व्यर्थ के गोबर ख़रीदी में 3 साल में कितना पैसा बहाया जा चुका है । उल्टा इसके लिए क़र्ज़ लिया जाता है ।गोबर ख़रीद के समूह जो वर्मी कॉम्पोस्ट बना रहे है उसको ना तो किसान ख़रीद रहे है ना कोई प्राइवट सेक्टर । अगर किसान ख़रीदते तो आजकल हर ज़िले में खाद के कमी पे आंदोलन ना होता ।आवास जैसे अति ज़रूरत काम के लिए अगर वो पैसे लगा दिए जाते तो आज ये दिन देखना नहीं पड़ता । रोटी,कपड़ा और मकान तो इंसान की पहली ज़रूरत होती है ।सभी जानते है हाथी समस्या हमारे राज्य में कितनी विकराल हो चुकी है । लोगों का कच्चा मकान तोड़ना इनके लिए बहुत आसान होता है जिससे बहुत जान माल का नुक़सान होता है । हाथी दल आने पर गाँव वालों को पक्के भवन में शिफ़्ट करना पड़ता है । अगर ये पक्के आवास इन ग़रीबों को नसीब हो जाते तो हाथी और सरकार के प्रति भी लोगों का ग़ुस्सा बहुत कुछ कम हो चुका होता ।
गोबर से मन नहीं भरा तो अब सरकार 28 जुलाई से गोमूत्र भी ख़रीदने जा रही है । 4 रुपये प्रति लीटर के दर से गोमूत्र की ख़रीदी उन्ही सुने और बंजर पड़े गोठनो में होगी । ये समझ से परे है की अगर मूत्र में कोई पानी मिला के लाएगा तो कैसे पकड़ेंगे ?? अगर इंसान अपना मूत्र ले आएगा तो कैसे पता चलेगा ?? क्या मुख्यमंत्री के सलाहकारों ने ऐसा कोई मशीन का आविष्कार कर डाला है जो गोमूत्र और दूसरो के मूत्र में झट से फ़र्क़ बता सकेगा ?? गोमूत्र के लिए सरकार के पास पैसे है और बदहाल पड़े सड़कों का क्या ?? नयी सड़क तो छोड़ो वो तो 3.5 साल में एक भी नहीं बनी, पुरानी सड़कों का मरम्मत तक नहीं हो पा रहा । बरसात में तो छत्तीसगढ़ के हर शहर और गाँव के सड़क में गड्ढे ही गड्ढे मिलेंगे । और गोमूत्र से बनाएँगे क्या ??
फिर से वही ज़ैविक खेती और खाद का रोना । इंसानी मल और मूत्र भी खाद का काम करती है । इसको भी ड्रीम प्रोजेक्ट में शामिल क्यू नहीं किया जाए ???
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