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बिलासपुर – पत्रकार सुशील पाठक हत्याकांड…सुशील हम शर्मिंदा हैं, तेरे कातिल जिंदा हैं … हत्या के दस साल बाद भी गिरफ्त से बाहर हैं हत्यारे … निर्भया की मां को तो न्याय मिला पर क्या बिलासपर के पत्रकार के परिवार को भी न्याय मिल पायेगा?

शशि कोंन्हेर

बिलासपुर // निर्भया के साथ दरिंदगी करने वाले दरिंदों के लिये आज ब्लेक वारंट जारी होने और 22 जनवरी को फांसी की तारीख तय होने के बाद उसकी मां को देर से Iही सही न्याय होने का अहसास जरूर हो रहा होगा। फांसी की तिथि तय होने के बाद पूरे देश की न्याय पर आस्था भी बढ़ी ही है।

लेकिन इस मामले के परे बिलासपुर में आज से दस साल पहले हुए एक पत्रकार के अंधे कत्ल के मामले में कातिलों को सजा होना तो दूर उनकी गिरफ्तारी भी नही हो पाई है । कानून के लंबे हाथ भी इस मामले में पता नही कितने छोटे पड़ गए हैं।
पूरे दस साल से अपने पति के हत्यारों की गिरफ्तारी का इंतजार कर रही बिलासपुर के एक वरिष्ठ पत्रकार एवम प्रेस क्लब के तत्कालीन सचिव स्वर्गीय सुशील पाठक की धर्मपत्नी श्रीमती संगीता पाठक और उनके दो मासूम बच्चों की मानसिक पीड़ा को आप क्या कहेंगे? जो बीते दस साल से इस बात का इंतजार कर रहे है कि कब स्वर्गीय सुशील पाठक के हत्यारो की गिरहबान तक पुलिस के हाँथ पहुचेंगे और कब उन्हें सीखचों के पीछे धकेला जाएगा?

लेकिन जिस तरह 19 दिसंम्बर 2009 में हुए इस हत्याकांड के कातिल अभी तक पकड़ से बाहर हैं, उसने सभी को घोर निराशा में डुबो दिया है।
हालांकि तमाम निराशा के बावजूद बिलासपुर के तमाम पत्रकार और इस शांत शहर के नागरिकों के दिलों में स्व सुशील पाठक हत्याकांड के खुलासे की उम्मीदों का दिया अभी भी टिमटिमा रहा है। सबके मन मे यह आस अभी भी जिंदा है कि एक न एक दिन उनके हत्यारे जरूर पकड़े जाएंगे।

यह बहुत दुखद है कि इस हत्याकांड की जांच को लेकर पहले पुलिस ने और बाद में सीबीआई के नुमाइंदों ने जो आपराधिक गलतियां व नाटकबाजियाँ कीं। उसने इस अंधे कत्ल की गुत्थी को और भी उलझा कर रख दिया। लेकिन फिर भी , बिलासपुर के पत्रकारों और शहरवासियों का एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा भी है जो निराशा भरे मरघटी सन्नाटे के बावजूद आज भी ये उम्मीद पाले हुए है कि एक न एक दिन हम सबके लाडले पत्रकार स्वर्गीय सुशील पाठक के हत्याकांड से पर्दा जरूर हटेगा और इसमे लिप्त अपराधी या अपराधियो को उनके किये की सजा भी जरूर मिलेगी।

बिलासपुर के साथ ही पूरे प्रदेश के सामाजिक संगठनो और पत्रकारों ने हत्याकांड के विरोध में जमकर आवाज भी उठाई थी। हत्याकांड के बाद उसकी जांच में पुलिस को असफल होता देख , शासन पर इसकी सीबीआई से जांच कराने के लिए परिणाममूलक दबाव भी बनाया था। वह जांच हुई भी । पर, वाह रे सीबीआई!!

उसकी ओर से जांच के लिए तैनात अफसरों ने इस हत्याकांड की जांच के नाम पर जो कुछ भी किया उससे, बिलासपुर के पत्रकारों और नागरिकों को इस राष्ट्रीय जांच एजेंसी(सीबीआई)के नाम से ही “घिन” हो गई है।

पूरे दस साल बीत जाने के बाद भी न तो हत्यारो का पता चल पाया है और न हत्या के कारणों का ही कोई खुलासा हो पाया है।। पुलिस और सीबीआई की इस नाकामी पर लानत है।

अपने हरदिल अजिज पत्रकार साथी की हत्या के एक दशक बाद भी हत्यारों को गिरफ्तार करने में पुलिस और सीबीआई की असफलता पर हम सबके भारी मन मे बस यही आवाज गूंज रही है,,,,सुशील हम शर्मिंदा हैं, तेरे कातिल जिंदा हैं।
बहरहाल, पत्रकारों के प्रति संवेदनशील और पत्रकार सुरक्षा कानून बनाने के लिए प्रतिबद्ध नजर आ रहे प्रदेश के मुख्यमंन्त्री श्री भूपेश बघेल से यह उम्मीद तो की ही जा सकती है कि वे इस मामले की जांच के लिये एसआईटी का गठन कर स्वर्गीय सुशील पाठक हत्याकांड की साजिश और उनके हत्यारो के नाम का पर्दाफाश करने की दिशा में जितनी जल्दी हो कोई ऐसा ठोस निर्देश दें जिसके हम बिलासपुर पत्रकारों को, देर से ही सही न्याय मिल सके।

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