बापू का ग्राम स्वराज… और आज का पंचायती राज ?
बापू का ग्राम स्वराज अपने आप में गांव की मजबूत लोकतांत्रिक व्यवस्था का एक बड़ा अभियान था जिसमें गांव में निवास करने वाले सभी लोग अपने गांव के समग्र विकास को ध्यान में रखते हुए ग्राम में उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करते हुए अपने रोजगार का सृजन और लोकतांत्रिक व्यवस्था को कायम करते हुए अपने गांव को आदर्श बनाने की दिशा में प्रयासरत हों । किंतु आजादी के 7 दशक बाद भी बापू के ग्राम स्वराज की परिकल्पना को साकार होने का अभियान था उसकी जमीनी हकीकत आज प्रदेश में जारी पंचायती राज व्यवस्था के बाद भी गांवों में देखने को नहीं मिल पा रही है । ग्राम स्वराज को लेकर हम नरसिंहपुर जिले की ही बात करें तो नरसिंहपुर जिले में ग्राम स्वराज की जो व्यवस्था और ग्रामों का विकास होना था वह आज भी दिखाई नहीं देता, ग्राम पंचायतों में ग्राम विकास को लेकर ग्राम सभाओं की बैठकें राष्ट्रीय पर्व और जयंती के अवसर पर आयोजित होने की जो परंपरा है वह केवल रस्म अदायगी तक ही सीमित है । अक्सर गांव में आयोजित की जाने वाली ग्राम सभाओं की बैठकों का किसी को पता भी नहीं चलता और अगर वे बैठकों में जाते हैं तो सर्वसम्मति की बात ही नहीं होती और तब गांव के हित के लिए जो निर्णय लिए जाने हैं वह कब ले लिए जाते हैं इसकी जानकारी आम ग्रामीणों को बहुत बाद में पता चलती है । बापू मंडला जिले में एक बार आये भी थे उस दौरान उन्होंने बरमान घाट पर नाव से मां नर्मदा को पार किया था, उस समय का वाक्या आज भी किताबों में दर्ज है । बापू शराब के बेहद खिलाफ थे वे कहते थे जितना देश से अंग्रेजों का जाना जरूरी है उतना ही देश मे पूर्ण शराबबंदी होना भी जरूरी है , और शायद इसलिए ही गुजरात, बिहार राज्यों मे शराबबंदी को लागू किया गया है किंतु आज दुर्भाग्य है कि बापू जी ने जहां से नाव में बैठकर मां नर्मदा पार की थीं उस पवित्र नगरी बरमान और उससे लगे क्षेत्रों में आज शराब अवैध रूप से बिक रही है । जिस आदर्श लोकतांत्रिक व्यवस्था और कुटीर उद्योगों के माध्यम से स्वदेशी वस्तुओं के निर्माण से स्वरोजगार और उससे मजबूत आर्थिक व्यवस्था बन सके उस हेतु जो ग्रामों में संसाधनों की आवश्यकता जताई गई थी है वह आज गांवों में उपलब्ध होने के बाद भी उपयोग में नहीं लाई जा रही है नतीजतन रोजगार के लिये गांव से लोगों का पलायन शहरों में हो रहा है ।
आज पंचायतो में आम जनों के नाम पर जो शासकीय योजनाएं हैं उनमें बंदरबांट मची हुई है नेताओं के आसपास रहने वाले लोग पंचायतों में अनाप-शनाप तरीके से सामग्रियों की खरीदी के बिल और निर्माण कार्यों की सामग्री के बिल लगाकर लाखों के वारे न्यारे कर रहे हैं ऐसे में ग्राम स्वराज की परिकल्पना अपने आप में बेमानी हो जाती है । राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती के दिन कई स्तरों पर बापू के आदर्शों और उनके विचारों को लेकर आयोजन और बड़े-बड़े कार्यक्रम होंगे किंतु वास्तव में बापू का जिस ग्राम स्वराज का सपना था आज भी कई ग्राम पंचायतों में पूरा होता नहीं दिख रहा है आम आम जनमानस जिले की ऐसी अनेकों ग्राम पंचायतों में हुए निर्माण कार्यों और उन में हुए भ्रष्टाचार को लेकर शिकायतों का पुलिंदा लेकर इधर से उधर दौड़ रहे हैं किंतु जो बात ग्राम सभा और गांव की चौपाल पर होना चाहिए वह अब नेताओं के इशारे पर तय हो रही है और आलम यह की पंचायती राज में हम एक बार फिर अपनी आजादी के कई सालों बाद बापू के आचार विचारों को लेकर गांधी जयंती मनाने जा रहे हैं किंतु आज की राजनीति और प्रशासनिक व्यवस्थाओं में गांव की पंचायतों में सामान्य आम आदमी की भागीदारी सुनिश्चित हो और उसकी सुनी जाये यह अधिकार उसे नहीं दे पाये हैं , उसके उदाहरण जिले भर से अपनी अपनी छोटी छोटी समस्याओं को लेकर कलेक्ट्रेट की जनसुनवाई में पहुंचने वाले ग्रामीणों के आवेदनों में आज भी देखी जा सकती है । लोकतांत्रिक व्यवस्था के लंबे सफर में हमारे गांव गांव लोक स्वराज के माध्यम से आम आदमी जब अपने गांव में ही अपने विकास, रोजगार और कार्यों के निर्णय और क्रियान्वयन में सहभागिता करने लगेगा तब मानो सच्चे अर्थों में ग्राम स्वराज का सपना साकार होगा…… !
( साभार ) Narayan Singh barmaiya
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