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नवजात शिशु के लिए अमृत से कम नहीं है मां का दूध… कोरोना काल में घर-घर जाकर मनाया गया शिशु सुरक्षा दिवस… लोगों को जागरूक करने का किया प्रयास…

बिलासपुर // कोरोना संक्रमण के चलते स्वास्थ्य विभाग कई जागरूकता कार्यक्रम उस तरीके से नहीं मना सका, जैसा की अन्य सालों में मनाता था। सात नवंबर को भी विभाग ने शिशुओं के स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता के लिए अनोखे तरीके से “शिशु सुरक्षा दिवस” मनाया। इस मौके पर आंगनवाड़ी कार्यकर्ता-सहायिका व मितानिन ने घर-घर जाकर चिन्हित गर्भवती महिलाओं और शिशुवती माताओं को शिशु के सुपोषण के लिए जागरूक करने का प्रयास किया। इस दौरान लोगों को बताया गया कि नवजात शिशु के लिए मां का दूध अमृत समान है। इसलिए बच्चे को मां का दूध ही पिलाएं।

जिला कार्यक्रम अधिकारी लता बंजारे ने बताया,कोरोना संक्रमण के खतरे के कारण शिशु सुरक्षा दिवस सामाजिक दूरी को ध्यान में रखकर मनाया गया।इसके लिए डिजिटल प्लेटफार्म का भी उपयोग किया गया है। फेसबुक व व्हाट्सएप जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर प्रेरक स्लोगन पोस्ट कर शिशु की सुरक्षा के प्रति जागरूकता की अपील की गई। जिला अस्पताल सहित सभी सीएचसी व पीएचसी में स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों ने बैनर-पोस्टर लगाकर शिशु सुरक्षा के संबंध में लोगों को जागरूक करने का प्रयास किया।

उन्होंने बताया,ब्रेस्ट फीडिंग कॉर्नर्स में शिशुवती माताओं को स्तनपान के फायदे बताते हुए व्यापक जानकारी दी गई। इस दौरान लोगों को बताया गया किमां का दूध शिशु के लिए सबसे ज्यादा लाभदायक होता है। इसके अलावा आंगनवाड़ी कार्यकर्ता व मितानिन ने घर-घर जाकर शिशुवती माताओं व गर्भवती महिलाओं को स्तनपान कराने के तरीके बताए। उन्हें मां के दूध के फायदे बताए गए कि यहबच्चों में कुपोषण दूर करता है। इसके साथ ही महिलाओं को संस्थागत प्रसव पर जोर देते हुए समय-समय पर टीकाकरण लगवाने के लिए जागरूक किया गया। स्तनपान के साथ-साथबताया गया कि शिशु के लिए मां का दूध अमृत के समान होता है, इसीलिए कम से कम छह महीने तक शिशु को केवल स्तनपान ही कराएं एवं 6 महीने की आयु के बाद स्तनपान कराने के साथ-साथ ऊपरी पौष्टिक पूरक आहार भी देना चाहिए।

इसलिए जरूरी है जागरूकता…

कई बार नवजात शिशु को उचित देखभाल ना मिलने व स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं की कमी के कारण वे कुपोषित भी हो सकते हैं। यानी एक छोटी-सी लापरवाही, अनदेखी या जागरूकता में कमी से उस नवजात शिशु को कई बीमारियां भी हो सकती हैं। यह समस्या आमतौर पर शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्र में अधिक पाई जाती है और लोगों में जागरूकता का अभाव ही इसका प्रमुख कारण माना जाता है। इसीलिए नवजात शिशुओं की सुरक्षा के प्रति लोगों को जागरूक करने तथा उनकी उचित देखभाल के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से हर साल 7 नवंबर को शिशु संरक्षण दिवस मनाया जाता है।

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