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सुप्रीम कोर्ट में भूपेश और चैतन्य बघेल की याचिकाओं पर सुनवाई : एक याचिका खारिज, दूसरी 6 अगस्त के लिए सूचीबद्ध…

बिलासपुर, अगस्त, 04/2025

सुप्रीम कोर्ट में भूपेश और चैतन्य बघेल की याचिकाओं पर सुनवाई : एक याचिका खारिज, दूसरी 6 अगस्त के लिए सूचीबद्ध…

नई दिल्ली, 4 अगस्त | छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और उनके पुत्र चैतन्य बघेल की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं पर आज सुनवाई हुई। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ ने भूपेश बघेल की एक याचिका खारिज करते हुए कहा कि संबंधित मामले को उच्च न्यायालय में उठाया जाए, जबकि दूसरी याचिका को 6 अगस्त के लिए सूचीबद्ध कर दिया गया है। वहीं, चैतन्य बघेल की हिरासत को चुनौती देने वाली याचिका वापस ले ली गई।

भूपेश बघेल की याचिकाएं

भूपेश बघेल की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ताओं मुकुल रोहतगी और कपिल सिब्बल ने पैरवी की।

पहली याचिका में आरोप लगाया गया था कि जांच एजेंसियां टुकड़ों में चालान दाखिल कर रहीं हैं, जिससे आरोपी को 90 दिन के भीतर चालान दाखिल न होने पर मिलने वाला जमानत का लाभ नहीं मिल पा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को खारिज करते हुए हाई कोर्ट में जाने की सलाह दी।

दूसरी याचिका, जिसमें पीएमएलए की धारा 44 को चुनौती दी गई है, पर कपिल सिब्बल ने कहा कि इस धारा को लेकर सुप्रीम कोर्ट की विभिन्न पीठों ने परस्पर विरोधी निर्णय दिए हैं। उन्होंने तर्क दिया कि एक बार चालान पेश हो जाने के बाद बिना मजिस्ट्रेट की अनुमति के जांच जारी रखना उचित नहीं है, फिर भी ईडी और आर्थिक अपराध शाखा लंबे समय तक जांच चलाकर मनमानी गिरफ्तारियां कर रही हैं। सिब्बल ने अनुरोध किया कि इस याचिका को पहले से लंबित एक समान प्रकृति की याचिका के साथ जोड़ा जाए, जिसकी सुनवाई 6 अगस्त को प्रस्तावित है। खंडपीठ ने याचिका को उसी तिथि के लिए सूचीबद्ध कर दिया है।

चैतन्य बघेल की याचिका…

पूर्व मुख्यमंत्री के बेटे चैतन्य बघेल, जिन्हें 18 जुलाई को प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने हिरासत में लिया था, ने अपनी गिरफ्तारी को अवैध बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। उनकी ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील दी कि गिरफ्तारी बिना किसी समन के की गई, और गिरफ्तारी के आधार मनगढ़ंत और कानून के विपरीत हैं। उन्होंने कहा कि 10 मार्च को हुई रेड में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं मिला था और मार्च से जुलाई तक कोई समन जारी नहीं हुआ।

याचिका में पीएमएलए की धारा 50 और 63 को भी चुनौती दी गई, जिनके तहत ईडी किसी व्यक्ति से उसके खिलाफ बयान देने के लिए बाध्य कर सकती है, जो कि भारतीय आपराधिक कानून के सिद्धांतों के खिलाफ है।

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि उक्त धाराओं की संवैधानिकता को चुनौती देनी है तो एक पृथक याचिका दायर करें। वहीं गिरफ्तारी और जमानत से जुड़े मुद्दों के लिए हाई कोर्ट जाने की सलाह दी गई। इस पर सिंघवी ने सहमति जताते हुए याचिका वापस ले ली।

यह मामला छत्तीसगढ़ की राजनीति और प्रवर्तन एजेंसियों की कार्यप्रणाली को लेकर एक बार फिर चर्चा के केंद्र में है। अब सभी की निगाहें 6 अगस्त को होने वाली सुनवाई पर टिकी हैं, जो पीएमएलए की धारा 44 की वैधानिकता और जांच प्रक्रिया की सीमाओं को लेकर एक महत्वपूर्ण दिशा तय कर सकती है।

 

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Lokesh war waghmare - Founder/ Editor
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