री-एंगेज्ड स्टाफ को हटाने का मामला: रेलवे बोर्ड के आदेश ताक पर ,,

री-एंगेज्ड स्टाफ को हटाने का मामला: रेलवे बोर्ड के आदेश ताक पर ,,

संपूर्ण विषय पर समावेशक आदेश जारी करने में रेलवे बोर्ड भी करता है कोताही ,,

रेल मंत्रालय (रेलवे बोर्ड) द्वारा कोविड-19 सुरक्षा और अनावश्यक स्टाफ कॉस्ट को कम करने के उद्देश्य से जोनल रेलों/उत्पादन इकाईयों के स्तर पर री-एंगेज्ड स्टाफ को हटाने में की जा रही हीलाहवाली को देखते हुए 10 जुलाई 2020 को एक पत्र {सं.ई (एनजी) 2/2007/आरसी-4/कोर/1(पीटी.)} जारी करके स्पष्ट आदेश जारी किया गया था कि अपवाद स्वरूप किसी रेयर मामले में, वह भी सिर्फ सेफ्टी से संबंधित यदि अत्यंत आवश्यक हो तो ही किसी को छोड़कर, बाकी सभी ग्रुप ‘सी’ री-एंगेज्ड स्टाफ की सेवाएं तुरंत प्रभाव से समाप्त कर दी जाएं। लेकिन एक बार फिर कुछ जोनों/मंडलों द्वारा रेलवे बोर्ड के इस आदेश को ताक पर रख दिया गया है।

नियमों और रेलवे बोर्ड के दिशा-निर्देशों को खासतौर पर दरकिनार करने के लिए मशहूर कुछ जोनल रेलों में फिर यही खेल किया गया है, जहां कुछ री-एंगेज स्टाफ को तो कार्य मुक्त कर दिया गया, परंतु वहीं कुछ लोगों को मुक्त न करके किसी न किसी बहाने उनकी कथित सेवाएं जारी रखी जा रही हैं।

सिर्फ ग्रुप सी स्टाफ को हटाने के आदेश …

उपरोक्त पत्र में रेलवे बोर्ड ने सिर्फ ग्रुप ‘सी’ के री-एंगेज्ड स्टाफ को हटाने की बात कही है। परंतु इसमें ग्रुप ‘बी’ स्तर पर री-एंगेज्ड किए गए अधिकारियों के संबंध में कोई स्पष्ट निर्देश नहीं दिया है। जबकि कुछ जोनल रेलों द्वारा इन री-एंगेज्ड अधिकारियों की तथाकथित सेवाएं लगातार जारी रखी गई हैं और उन्हें पिछले लगभग चार माह से जारी लॉकडाउन में बैठे-बिठाए वेतन भुगतान किया जा रहा है। क्या इस तरह होती कास्ट कटिंग (मितव्यता)?

संबंधित जोनों/मंडलों के इस भेदभाव और पक्षपातपूर्ण व्यवहार का प्रभावित री-एंगेज स्टाफ विरोध कर रहा है और कोर्ट में जाने की संभावना तलाश रहा है। इन सभी का कहना है कि यदि सुरक्षा की दृष्टि से उनकी सेवाएं टर्मिनेट की गई हैं, तो बाकी स्टाफ की सेवाएं क्यों नहीं समाप्त की गईं ? क्या वह लोग रेलवे बोर्ड के निर्देश के अनुसार आवश्यक सेफ्टी कैटेगरी में आते हैं ?

प्राप्त जानकारी के अनुसार न सिर्फ रेलवे बोर्ड को, बल्कि जोनल प्रधान कार्यालयों को भी इस मामले में अंधेरे में रखकर कुछ मंडलों द्वारा दिग्भ्रमित किया जा रहा है। यहीं सिस्टम की खामी उजागर हो जाती है। एक तरफ बोर्ड के आदेश के अनुपालन में कोताही की जा रही है, तो दूसरी तरफ रेलवे बोर्ड सहित जोनल मुख्यालयों को भी गुमराह किया जा रहा है। क्या जोनल अथवा मंडल अधिकारियों को रेल मंत्रालय, महाप्रबंधक और डीआरएम का तनिक भी भय नहीं रह गया है, जो उनके आदेशों पर भी छल-कपट करके उन्हें दिग्भ्रमित कर रहे हैं ?

क्या रेल प्रशासन इसका खुलासा करेगा कि जिन री-एंगेज्ड लोगों की सेवाएं समाप्त नहीं की गई हैं, वह कौन सी सेफ्टी कैटेगरी में आते हैं ?

अब जहां तक टर्मिनेट किए गए री-एंगेज्ड स्टाफ की बात है, तो उनमें प्रशासन द्वारा किए गए इस भेदभाव और पक्षपात के कारण भारी रोष व्याप्त है। प्रशासन की इस भेदभावपूर्ण नीति को लेकर वह मामले को पीएमओ और कोर्ट तक ले जाने की बात कह रहे हैं। उनका कहना है कि जब बात सुरक्षा की है, तब सभी री-एंगेज्ड स्टाफ को हटाया जाना चाहिए, लेकिन भेदभावपूर्ण नीति के कारण अब वे इस मामले को उच्च स्तर पर ले जाएंगे।

प्रश्न ये उठता है कि क्या रेलवे बोर्ड द्वारा दिए गए निर्देशों को कोई मंडल अथवा जोन अपने मन-मुताबिक बदल सकता है या उसमें कोई हेर-फेर कर सकता है ?

कोरोना महामारी के फैलने के कारण वर्तमान में वैसे भी ट्रेन संचालन मात्र 10 प्रतिशत ही हो रहा है और निकट भविष्य में फुल कैपेसिटी से सभी ट्रेनों का संचालन हो पाना फिलहाल मुश्किल ही लग रहा है। इसलिए इस समय अनावश्यक खर्चों पर रोक लगाते हुए किसी भी विभाग में किसी भी स्तर पर री-एंगेज्ड स्टाफ रहना ही नहीं चाहिए। रेलवे बोर्ड को इस विषय पर स्पष्ट निर्देश जारी करना चाहिए।

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